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भरतेश वैभव इसलिए आप गुखियों में श्रेष्ठ हैं। आप अपने भाईको भी सुख ही देवें। जब आप उनके साथ युद्ध के लिए खड़े हो जायेंगे, उस समय ९६ हजार रानियोंका चित्त नहीं टुम्वेगा? हम आठ हजार स्त्रियों का हृदय दहल नहीं उठेगा? इन बातोंको जरा आप विचार करें। आप और उनमें प्रेम रहा तो वे हमारी बहिने का भी यहाँ आ सकती है, हम भी वहाँ जा सकती हैं। हममें कोई भेद नहीं है। परन्तु हमारे इस प्रेममें आप अन्तर ला रहे है, जरा पर रेंदारोके घरजाना उचित नहीं, परन्त आपको बड़े भाईके घर पर जाकर हमारी बहिनोंके साथ प्रेमसे न रहें, इस प्रकार आप हमें कंदमें क्यों डाल रहे हैं ? बड़े भाई के साथ इस प्रकार विरोध करना उचित नहीं है। हमारी इच्छा की पूर्ति करनी ही चाहिए। इस प्रकार चित्रावती हाथ जोड़कर कहने लगी।
इतने में रतिदेवी नामक रानी कहने लगी कि चित्रावती ! तम ठहरो मुझ इस समय क्रोधका उद्रेक हो रहा है। मैं जरा कहकर देलूँगी । वह रतिदेवी बुद्धिमती है, चंचल नेत्रवाली है, निश्चलमतिबाली है, पतिभक्ता है, धीर है, शृङ्गार है, रतिकालमें कुशल है, इच्छामहादेवी की वह बहिन है व बाहुबलियो लिए वह अधिक प्रीतिपात्रा है। इसलिए बिलकुल परवाह न कर बोलने लगी। कहने लगी श्रीक है, बिलकुल ठीक है अपने सामर्थ्यका प्रयोग अपने ही लोगोंपर करके देखना चाहिए और कहाँ उसे दिखा सकते हैं ! कामबाणको धारण करने का अभिमान अपने बड़े भाईके साथ ही दिखाना ही चाहिए । शावास! नाथ ! शाबास ! जीजाजी (भरतेश्वर) की स्त्रियों को व हम सबको दुःख पहुँचानेवाले आपको लोग भ्रांतिसे काम करते हैं। सचमुचमें आपको यम कहना चाहिए। आपका यह बर्ताव विसीको भी मीठा नहीं लग रहा है । परन्त आप इक्षुचाप ( कामदेव ) वाहलाते हैं । क्या वह इक्षुचाप है या बाबुका बाण है ? आप मृदुहृदय म अपने भाईके पास नहीं जाना चाहते, अपितु पत्थरका हृदय बनाकर जा रहे हैं। ऐसी अवस्थामें आपनो पुष्पबाण कैसे कह सकते हैं, वह पुष्पबाण नहीं होगा, लोहबाण होगा। जरा विचार तो कीजिए। क्या आपके व्यवहारसे वहाँपर सुभद्रादेवीको दुःख नहीं होगा? यहाँपर हम लोगोंको संताप न होगा? जानते हुए भी सबको दुःख पहुँचानेवाले आप पागल हैं, जाइये । न करने योग्य कार्यको करनेके लिए आप उत्तरे हैं। न बोलने योग्य बातको मैं बोल रही हूँ। यह अन्तिम समय है,