________________
४००
भरतेश वैभव सहोदर सबके सब भरतेश्वरको नमस्कार न कर भाग गये। हमारे बेटेने इन सबका क्या बिगाड़ किया था। क्या बड़े भाईको नमस्कार करने का कार्यहीन है ? बड़े पिततल्य हैं, समझकर उसकी भक्ति सत्पुरुष करते हैं । परंत धूर्त लोग उसके साथ विवाद करते हैं। सबके सब दीक्षा लेकर चले गये। तुम तो कमसे कम मेरी इच्छाकी पूर्ति करो। इस प्रकार भाईके साथ विरोध मत करो।" बहुत प्रेमसे सुनन्दादेवीने कहा ।
बाहुबलिने सोचा कि युद्धके नाम लेनेसे माताको दुःख होगा। इमलिये माताको किसी तरह संतुष्ट कर देना चाहिये । इस विचारसे कहने लगा कि माता ! नहीं ! युद्ध नहीं करूंगा। पहले सोचा जरूर था । परन्तु मब लोग जब मनाही कर रहे हैं तब विचारको छोड़ना पड़ा। दूसरोंने जिस कामके लिए निषध किया है, उसे मैं कैसे कर सकता हूँ? आप चिता न करें मैं बड़े भैयाको नमस्कार कर आऊँगा। इस प्रकार मुखसे माताको प्रसन्न करने के लिए कहनेपर भी मनमें क्रोध उद्विक्त हो रहा था। कामदेवके लिये मायाचार रहना स्वाभाविक है। सुनन्दादेवीको सन्तोष हुआ। उसने आशीर्वाद देकर कहा कि बेटा ! जाओ ! ऐसा ही करो। बह भोली उसके अंतरंगको क्या जाने ?
वहाँसे निकलकर बाहुबलि अपने शृंगारगृहमें चला गया। वहाँपर सबसे पहिले अपने शरीरका अच्छी तरह शृङ्गार किया। वह कामदेव स्वभावतः ही सुन्दर है। फिर ऊपरके शृङ्गारको पाकर सबके मन व नेत्रको अपहरण कर रहा था। इतने में उनकी स्त्रियाँ वहाँपर आई। अनेक स्त्रियोंके साथ पट्टरानी इच्छामहादेवीने नमस्कार किया व प्रार्थना की कि स्वामिन् ! आज आपने वीरांगशृङ्गार किया है । किसपर इतना क्रोध ? क्या स्त्रियोंपर अथवा नौकरोंपर ? स्वामिन् ! लोकमें जितनी स्त्रियाँ हैं वे सब मेरे पक्षकी हैं और पुरुष सब तुम्हारे पक्षके हैं। फिर आप क्रोध किनपर कर सकते हैं ? उत्तरमें बाहुबलिने कहा कि देवी ! तुम्हारे पक्षके ऊपर मैं चढ़ाई नहीं करूँगा। जो चक्रवर्ती मेरा सामना करनेके लिए खड़ा है, उसके प्रति मैं चढ़ाई करूँगा। उस भरतको परमात्मयोगका सामर्थ्य है। इसलिए वह पुष्पबाणसे डरने. बाला नहीं है। उसकी सेनाके साथ लोहायुधसे काम लेकर उनको भगाकर आऊँगा । उत्तरमें इच्छामहादेवीने कहा कि देव ! आपने यह अच्छा विचार नहीं किया। क्योंकि इसे लोकमें कोई भी पसन्द नहीं करेंगे । बड़े भाईके साथ युद्ध करना क्या उचित है ? इस विचारको स्वामिन् ! छोड़ दीजिये ! बड़े भाईके साथ अपने सामर्थ्यको बतलाना