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भरतेश वैभव
ठीक है, उठो, बैठकर शांतिसे बोलो। तब दक्षिणांक उठकर खड़ा हुआ।
दक्षिणांकके खड़े होनेके बाद भरतेश्वरने कहा कि शान्तिसे सर्व हकीकत कही। तब दक्षिणांकने कहा, स्वामिन् ! आपका भाई कामदेव है, पुष्पवाण है, वह कठोर बचनको कैसे बोल सकता है ? उसने कहा कि बड़े भाईको अपनी सेनाके साथ अयोध्याकी ओर जाने दो। मैं बादमें जाऊँगा। भरतेश्वर मनमें विचार कर रहे थे कि देखो मेरे नगरमें जाने के लिये क्या इसकी आज्ञाकी जरूरत है ? उसके अभिमानको मात्राको तो देखो। फिर प्रकटरूपसे कहने लगे कि दक्षिणांक ! निस्संकोच होकर कहो आखिर उसने क्या कहा, एक ही बात कहो । युद्धके लिये तैयारी दिखाई ? नहीं ! नहीं! युद्धके लिये नहीं, अपने भाईके साथ कसरत करनेके लिए आऊँगा । ऐसा उन्होंने कहा । बचपन में अनेक बार मैं अपने भाईके साथ कुस्ती खेल चुका हूँ। अब सेनाके सामने एक दफे कुस्ती खेलूगा। ऐसा भाईने कहा । स्वामिन् ! मैं क्या कहूँ । बहुत विनयतंत्रसे मैंने बुलानेकी चेष्टा की। अनेक मंत्रीमित्रोंने भी उनकी प्रेरणा की। अनेक स्त्रियोंने भी गहा : तु
उ नमें ये नाम: जेची ! विशेष क्या? आपको देखनेपर जिस प्रकार भक्ति करनी चाहिये उसी प्रकार उनके प्रति मैंने भक्ति की। भेदबुद्धिरहित वचनोंको ही बोले । मंत्री मित्रोंके मेरे पास प्रसन्नता हुई । उसे पसन्द नहीं आई। मैं जिस समय वापिस आ रहा था नगरवासी जन आपसमें बात-चीत कर रहे थे कि भरतेश्वरके साथ इसने विरस विचार किया है सो दुनियामें इसे कोई भी पसंद नहीं करेगा।
भरतेश्वरको उपर्यत सर्व समाचार सुनकर दूःख व संताप हआ, वे विचार करने लगे कि देखो उसका अभिमान ! मेरे साथ युद्ध करने की तैयारी की। अपने नाश की उसे परवाह नहीं है। बहिरात्माओंको अपने पुष्पवाणसे कष्ट पहुंचा सकता है। परंतु मुझ सरीखे सहजात्मरसिकोंको वह क्या इरा सकता है? उसके बाण दूसरोंको भले ही बाधा पहुंचा सकते । परंतु आत्मतत्परोंको वे बुछ भी नहीं कर सकते । आत्मतत्पर पुरुष यदि उन बाणोंको रहने के लिये कहें तो रहते हैं, नहीं तो जाते हैं | इस बातको बाहुबलि नहीं जानता है | यदि उसने पुष्पबाण का प्रयोग किया तो हंसनाथ ( परमात्मा ) को स्मरण कर उस पुष्पबाणको विध्वंस करूंगा। यदि हिसाकी भी परवाह न कर खड्ग लेकर आया तो उसे छीनकर उसे धक्का देकर रवाना करूंगा। जरा डॉटकर कहूँगा कि बाहुबलि ! जाओ । नहीं गया तो हाथसे धक्का देकर भेजूंगा