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________________ भरतेश वैभव क्यों दिया ? पखंडको पालनेके लिए दूध क्यों पिलाया ! कहिए माता जी ! माता यशस्वतीने उत्तर में कहा कि बेटा ! इस प्रकार दुःख मत करो, मुझे यह सब लोकांत व्यवहार पसन्द नहीं है, इसलिए एकांतमें आकर तुमसे मिलना चाहती थी, उसीमें मुझे संतोष है। जब मैं इस प्रकार आ रही थी, तुम्हारी सेनाके वीर बड़े धूर्त मालूम होते हैं। उन्होंने एकदम हल्ला मचाया। साथमें मेरे साथ आये हुए तुम्हारे विश्वासपात्रोंने भी उनके साथ हल्ला मचाया। ये भी धर्त हैं। तब उन वीरोंने कहा कि स्वामिन् ! छोटे मालिकने ( बाहुबलि ) वहींपर कहा था कि पहिलेसे हम समाचार भेजते हैं, आप बादमें जायें। परन्तु माताजीने माना नहीं। इसलिये हम लोगोंने सिर्फ कहा कि सम्राटकी माता आ गई हैं। इतनेमें सेना एकदम उमड़ गई। हम क्या करें ? सम्राट्ने उनसे प्रसन्न होकर कहा कि तुम लोगोंने अच्छा किया। नहीं तो माताजी गुप्तरूपसे ही आतीं। बादमें सम्राट्ने उनको अनेक उत्तमोत्तम पदार्थों को इनाममें दिये। माताजी ! आप तो एकांतमें आना चाहती थीं, परंतु आपका विचार लोकको मालूम नहीं था इसलिए उसने अपनी इच्छानुसार प्रकट कर ही दिया। हंसते हुए भरतेश्वरने कहा । लोकमें सर्वश्रेष्ठ आप जिस समय एक गरीब स्त्रीके समान आ रही थीं, इस विपरीत वर्तनसे भूकप हुआ, सेनामें एकदम खलबली मच गई । विशेष क्या? मैं स्वयं खड्ग लेकर यहाँतक आया भरतेश्वर ने पुन: कहा। उत्तरमें यशस्वती माताने भरतेशकी पीठपर हाथ फेरते हुए कहा कि बेटा ! बस! तुम्हारे तेजको छिपाकर मेरी ही प्रशंसा करते जा रहे हो। तदनन्तर भरतेशने हाथका सहारा देकर बाहरके आँगनसे अंदरके आँगनमें मातुधीको पधरामा । साथ ही जाते समय छोटी माँ (सुनंदा) व छोटे भाई (बाहुबलि) का कुशल वृत्तांत भी पूछ लिया। आगे जाकर बीचका जो दीवानखाना आया वहाँपर एक उत्तम आसनपर मातुश्रीको बैठा दिया और दोनों ओरसे अपने पुत्रोंको खड़ाकर भरतेश्वर माताकी भक्ति करने लगे। इतनेमें भरतेश्वरकी रानियाँ माताके दर्शन के लिए बहुत उत्साहके साथ आईं। बहुओंको मालूम हुआ कि सासु आई हैं । सब लोग बहुत हर्षके साथ मंगल द्रव्योंको अपने हाथमें लेकर सासुके दर्शन के लिये आई। यशस्वती महादेवीको भी अपनी हजारों बहुओंको देखकर बड़ा
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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