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भरतेश वैभव हैं ? उन्होंने आपके लिए क्या कम किया है ? लोकमें सबसे श्रेष्ठ पदार्थको आपको दिया है, इस बातका भी विचार आपको नहीं है ? उत्तम वस्तुको जिन्होंने दिया है उनके साथ बहुत नम्रतासे बोलना चाहिये। परन्तु आप तो उनकी हँसी कर रहे हैं। यह वृत्ति क्या आपको शोभा देती है ?
मरतेश्वर--मधुवाणी ! तुम्हारे राजाने मुझे क्या उत्तम वस्तुको लाकर दिया है। मेरी चीजको लाकर मुझे दी है। इसमें क्या बड़ी बात की ? व्यर्थकी डींग क्यों मार रही हो?
मधुषाणी-राजन् ! ब्यर्थकी बातें क्यों बना रहे हो? हमारे राजाने लाकर जब तुम्हारे आधीन किया तब वह तुम्हारी चीज बन गई, उससे पहिले तो वह आपकी चीज नहीं थी।
भरतेश्वर - मधुवापी ! तुम अभी जानती नहीं। मामाकी पुत्री भानजेके लिए ही पैदा हुआ करती है। इस बातको दुनिया जानती है। फिर तुम्हारे राजाने क्या दिया? चक्रवर्तीने क्या लिया ? वह तो हमारे हककी चीज थी।
हमारी माताके बड़े भाई कच्छराज अपनी पुत्रीको अपने भानजेको नहीं देता ? यदि वह नहीं देता तो क्या यशस्वतीका ज्येष्ठ पुत्र उसे छोड़ सकता था? ___ मधुवाणी- राजन् तुम्हारे मामा तो दीक्षा लेकर चले गये हैं। अब तो देनेके अधिकारी हमारे राजा नमिराज ही थे। यदि वे गुस्सेमें आकर देनेके लिए इन्कार करते तो क्या करते ?
भरतेश्वर-एक नमिराजने इन्कार किया तो क्या हुआ ? बाकी सबके सब अनुकूल तो थे? फिर मेरे लिए किस बातका डर था ?
मधवाणी---बाकी कौन-कौन तुम्हारे पक्ष में थे। बोलो तो सही।
भरतेश्वर- दोनों मामीजी, विनमिराज और यह मेरी आठ हजार पांच सौ बहिनें ये सबके सब अनुकल हैं । मेरी बहिनें तो मेरे पक्षमें ही रहनेवाली हैं । यदि नमिराजने कन्या देनेके लिए इन्कार किया तो यह भोजन भी नहीं परोसतीं। समझी ! मधुवाणी ! भरतेश्वरके विनोदको देखकर नमिराजकी देवियां बहुत प्रसन्न हुई। ___ मौका देखकर नमिराज कहने लगे कि आज इस एक कन्याकी क्या बात है ? इससे पहिले हजारों सहोदरियोंको तुम्हें दे दिया है। मैंने हजारों सहोदरियोंके साथ तुम्हारा विवाह कर देने पर भी तुम जब हमारा उपकार नहीं समझते तो यह बिलकुल ठीक सिद्ध हुआ कि