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भरतेश वैभव सब लोग माँग आगर है, यह समझकर भरतश्वरको परमहर्ष हुआ। उन्होंने विवाहकी तैयारी करनेके लिए आदेश दिया। विवाहसमारंभके उपलक्ष्यमें सेनास्थानका श्रृंगार किया गया। एक नवीन जिनमंदिरका निर्माण हुआ । वहाँपर बहत संभ्रमके साथ पूजाविधान होने लगे। करोड़ों प्रकारके गाजेबाजेके साथ, शुद्ध मन्त्रोच्चारणके साथ पूजाविधान चल रहा है। भरतेश्वर भक्तिसे उसे देख रहे हैं । पूजाविधान के अनंतर विप्रमणोंको अभ्यंगके साथ अनेक भक्ष्यभोज्यसे तृप्त किया एवं उत्तमोत्तम वस्त्राभरणोंको दान में दिए । सम्राट्को किस बातकी कमी है ? "सति सुभद्रादेवी व पति भरतेश बहुत सुखके साथ चिरकाल जीते रहे" इस प्रकार दान लेते समय विनोंने आशी
दि दिया। इसी प्रकार अन्य श्रेष्ठिवर्ग, वेश्यायें, परिवार आदि सबको परमान्नसे सम्राट्ने तृप्त कराया। सेनास्थानकी प्रत्येक गलीमें भोजनका समारंभ हुआ। सेनाके एक-एक बच्चेको भक्ष्यभोज्यसे संतुष्ट किया । स्थान-स्थानपर वस्त्रके पहाड़ ही रखे हुए हैं। जिसे चाहे वह ले जाये । तांबूल, कपूर, इलायची वगैरह पर्वतोंके समान वेरके ढेर रखे हुए हैं। जो महल में जीम सकते हैं, उनको महलमें जिमाया। अन्य लोगोंको स्थान-स्थान पर पाकशालाका निर्माण कर भोजन कराया और जो अस्पृश्य है उनको पक्यान्न मिठाई वगैरह दिये गये । वे बांधकर ले गये । इतना ही नहीं हाथी, घोड़ा, आदि जो सेनामें सजीव युद्धसाधन हैं उनकी भी तृप्ति की गई। परिवारको संतुष्ट किया । व्यंतरोंको दिव्य वस्त्राभरणोंसे संतुष्ट किया। नरपति, खगपति, व्यंतरपति आदि अपने मित्रोंका यथेष्ट सत्कार किया। हजारों राजकुमारोंकी अपने महल में बुलाकर भोजन कराया व उनका सत्कार किया। अपनी बहिन गंगादेवी व सिंधुदेवीका यथेष्ट सत्कार किया गया। साथमें देवपरिवारजनोंका भी सत्कार किया। अपनी दोनों मामी और नमिराजका उन्होंने जिस वैभवसे सन्मान किया उसका क्या वर्णन हो सकता है ? नमिराजकी देवियोंका भी सन्मान किया। विशेष क्या ? १८ क्रोशपरिमित उस स्थानमें रहे हुए प्रत्येक प्राणीको सम्राने तृप्त किया। परंतु मुनिभुक्ति मात्र नहीं हो सकी। इसका भरतेश्वरके मनमें जरूर दुःख हुआ। तथापि उन्होंने अपनी उत्कृष्ट भावनासे इस कार्यको भी पूर्ण किया ।।
इस प्रकार चक्रवर्तीक कार्यको देखकर सासके हृदयमें बड़ा हर्ष हुआ । मनमें सोचने लगी कि ऐसे महापुरुषकी महलमें पहुंचने वाली