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भरतेश वैभव
कन्याओंको ब्रतसंस्कार कराया था इसलिये आपका पुण्य अनुपम है। हम दोनों भाइयोंको परम हर्ष हुआ। सभी कन्यायें व्रती हैं । यह सुचित करनेके लिये मैं यहाँपर आया हूँ विजयराजके वचनको सुनकर भरतेश्वरको मन में हर्ष हुआ । तथापि उसे छिपा कर कहने लगे कि विजयांक ! कन्याओंकी कौनसी बड़ी बात है। आप दोनों भाइयों ने जो परिश्रम किया है उसे मैं अच्छी तरह जानता हूँ। आगे चलो, मैं भी परिवारके साथ विजयार्ध की ओर ही आता है।
नाटयमान व विजयराजाको आमे भेजकर स्वतः चक्रवतीने भी विजयार्घकी ओर प्रस्थान किया। कहीं भी विलम्ब न कर बहुत वैभव के साथ मुक्कामोंको तय करते हुए विजयार्धके पास आ पहुंचे। सामने सपा के स्वागत के लिये नेक आगे हैं। उन्होंने बहुत आदर के साथ सम्राट्का स्वागत किया। मेधेश्वरके साथ बहुत आनन्दके साथ बोलते हुए सम्राट् अपने लिये निर्मित महलकी ओर जा रहे हैं । जिस समय भरतेश्वर सेनास्थानपर प्रवेश कर जा रहे थे उस समय जिन कन्याओंके साथ विवाह होनेवाला है वे कन्यायें अपनी महलकी छतपरसे सम्राट्को छिपकर देखने लगीं। उनके हृदयमें अपने भावी पतिको देखने की बड़ी आतुरता है। बाहर दूसरोंको अपना शरीर न दिखे, इस प्रकार छिपकर सम्राटकी शोभाको वे देखने लगी हैं । उनके सामने तरह-तरह के विचार उत्पन्न हो रहे हैं। ।
क्या यही भरतेश हैं ? यह तो कामदेवसे बढ़कर हैं। परन्तु इस प्रकार स्पष्ट बोलनेसे उन्हें लज्जा आती थी। भरतेश्वरको जिस समय बहत आतुरतासे वे देख रहीं थीं, उस समय कभी-कभी सम्राटके ऊपर डुलनेवाले चामरोंकी आड़ होती थी। तब उनको क्रोध आता था। परन्तु लज्जासे दूसरोंसे कह नहीं सकती थीं। परन्तु दूसरे शब्दसे बोलती थीं कि यह सम्राट अकेले ही अपने स्थानकी ओर हाथी पर चढ़कर आ रहे हैं, तब धवल छत्र ही काफी है। फिर इस सफेद हुए बालके समान इस चामरकी क्या जरूरत है। (जो कि व्यर्थ ही हमें अपने प्रिय मुखको देखने के लिये विघ्न डाल रहा है ) चलते-चलते कहीं हाथी खड़ा हुआ तो उनको बड़ा आनन्द आता था। हाथी जिस समय धीरे-धीरे चले उस समय भरतेशके मुखको देखने के लिये उनको अनुकूलता होती थी। परन्तु वह हाथी जब जरा वेगसे चलते तब उन्हें क्रोध आता था । वे कहती हैं कि हाथीके गमनको मन्दगमन कहते