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भरतेश वैभव बड़ा हर्ष होता था। दुनियामें सब लोगोंको कहीं सुख और कहीं दुःख होता है परन्तु त्रिवेकियोंको सब जगह सुख ही सुख है, इस बातका साक्षात् अनुभव उस गुफामें भरतेश्वर कर रहे थे। इस प्रकार बहुत उत्साहसे उस भयंकर पूल व गुफाको आनन्दके साथ सम्राट्ने सेनासहित पार किया।
कृतमालने सम्राटके स्वागत के लिये पहलेसे ही गुफाके अनेक द्वारोंमें तोरण-बन्धनको किया था, उन सबकी शोभाको देखते हुए सम्राट आगे बढ़ रहे हैं। उस अन्धकारमय गुकाको पार करने के बाद सबको बड़ा हर्ष हुआ। जिस प्रकार नबेलेमें बंधे हुए घोड़ेको मैदान में लानेपर वह जिस प्रकार आनन्दसे इधर-उधर दौडता है उसी प्रकार अंधेरेसे प्रकाशमें आनेपर उन स्त्रियोंके हृदयमें भी हर्ष उत्पन्न हुआ। गुफाके बाहर सब रानियोंके सुरक्षित गसे शालेय पनि अपने अनेक रूपोंको अदृझा कर एक ही रूप बना लिया। इसी प्रकार उस गुफासे सर्व सेना बाहर निकल आई। सबसे पहले सम्राट् अपने पुत्र, मंत्री, सेनापति, पुरोहित आदिसे मिलकर अनन्तर मित्रगण, विद्वज्जन, कवि गायक आदि सभीसे उन्होंने कुशल प्रश्न किया। सम्राट्ने सेनापतिसे प्रश्न किया कि क्या सेनाके सभी लोग मुरक्षित रूपसे आ गये ? सेनापतिने 'आ गये' इस प्रकारका उत्तर दिया । सम्राट् निश्चिन्त व संतुष्ट हुए। इस प्रकार उस गुफासे बाहर निकलनेके बाद उस मध्य म्लेच्छखण्डमें मुक्काम करनेका निश्चय हुआ। सम्राट्की आज्ञासे सेनापतिने सर्व व्यवस्था की । कृतमालको गुफाकी सुव्यवस्थिति के उपलक्ष्य में अनेक उत्तमोत्तम उपहारोंको 'मेंट में दिये । तब वहाँपर एक विचित्र व अपूर्व घटना हुई।
उस मध्य म्लेच्छ लण्ड में चिलातराज और आवर्तकराज नामक दो प्रमुख राज्यपालन कर रहे हैं। वे बड़े अभिमानी हैं । उनको सम्राट्के
आनेका समाचार मिला । वे कहने लगे कि कभी इस खण्डम चक्रवर्ती नहीं आता है ! आज यह क्यों आया? हम लोग इसके आधीन नहीं हो सकते । परन्तु बुद्ध कर इसे लौटाना कठिन है। अन्य उपायोंसे ही इसे यहाँसे वापिस भेज देना चाहिये इम विचारसे उन्होंने इस आपत्तिके समय कालमुन्न व मेघमुख नामके अपने कुलदेवोंकी आराधना की । वे दोनों देव प्रकट होकर कहने लगे कि आपलोगोंने हमें क्यों स्मरण किया है । बोलो ! हमसे क्या कार्यकी अपेक्षा करते हो ? उन दोनोंने उत्तर दिया कि देव ! हमलोग तो आप लोगोंके भक्त हैं, तब दूसरोंको नम