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________________ રપ૬ भरतेश वैभव है ? विनमिके इस प्रकारके वचनको सुनकर नमिराज कहने लगा कि बिपि ! अभी तम्हें रजांगका ज्ञान नहीं हैं। इसलिये इस विषयमें अब अधिक मत बोलो। भावजीके पौरुषपर तुम प्रसन्न हुए । परन्तु अपने लिये वह अब भावजी नहीं हैं। यह षट्खण्डाधिपति होने जा रहा है । षट्खण्डके राजाओंको अपने आधीन बनाने के लिये उसकी ती अभिलाषा हो रही है। अब अपन भी उसके सेवक कहलायेंगे। भाई ! अपन लोग अभीतक उसके साथ बैठकर सरमविनोद कर सकते थे । तू मैं की बात हो सकती थी। परन्तु अब उनके साथ बोलने के लिये, उसका दर्शन करने के लिये भेंट लेकर जाना पड़ेगा। 'आप' शब्दका प्रयोग कर बहुत बिनयसे बोलना पड़ेगा । सम्पत्ति ब वैभवमें समानता हो तो बन्धुत्वका भी ख्याल रहता है । जब उसकी सम्पत्ति बढ़ गई ऐसी अवस्था में वह अपने साथ बन्धुत्वका स्मरण नहीं रख सकता है। सेवकोंको बुलानेके समान अपनेको भी अरे, तुरे शब्दका प्रयोग कर वह सम्बोधन करेगा। बाल्यकालसे लेकर अपन उसके साथ खेल चुके हैं। उसका स्वभाव, गुण, चाल वगैरह सब अपनको मालम ही है। उसके समानकी वृत्ति लोकमें किसीभी पुरुषमें पाई नहीं जा सकती । याद करो ! अपन गेंद खेलते थे, उसमें भी उसी की जीत होती थी। पढ़ने में भी वही आगे रहता था। जो काम करनेको ठानता था उसे पूरा किये विना नहीं छोड़ता था। देखो तो सही ! आज भी वह षट्खण्ड विजयकं लिये निकला है, उसे हस्तगत किये बिना वह छोड़ नहीं सकता है । मुझे उसकी आदतोंका अच्छी तरह स्मरण है कि कभी खेलमें बह जीतता था, तो जीतनेके बाद चुपचापके वहाँसे निकल जाता था। परन्तु हम लोग जीतते थे तो हमें वहाँसे जाने नहीं देता था, फिर खेल खिलाकर अच्छी तरह हराकर भेजता था । भरतेशकी जीत होती है तो साथके लड़के सब आनन्दके साथ चिल्लाते थे। हमारी जीतमें वे लड़के चुपचाप खड़े रहते थे। भाई ! विचार करो, भुजबर्बाल वृषभसेनादिके साथ खेलकर अपन गज ( हाथी ) के समान लौटते थे। परन्तु इसके साथ खेलनेके बाद अज (बकरी) के समान आना पड़ता था । ऐसा होनेपर भी अभीतक और ही बात थी। परन्तु अब सम्पत्ति, वैभव, पराक्रम, अधिकार वगैरह सभी बातोंमें उसकी वृद्धि हो गई है। इसलिये अब वह किसीकी भी परवाह नहीं कर सकता है, इसे अच्छी तरह विचार करो। विनमिराज सभी बातोंको बहुत ध्यानसे सुन रहा था। कहने
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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