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________________ २४४ भरतेश वैभव ध्रुवगति व सुरकीतिकी भी प्रशंसा की। साथ में यह भी कहा कि स्वामिन्! अब प्रभासेन्द्र अपने राज्यको जाना चाहे तो उसे जानेकी अनुमति दी जाय और आगे जिस स्थानपर आप मुक्काम करें उसी स्थानपर आयें। भरतेश्वरने भी प्रभासामरको मंत्रीसहित बुलाकर अनेक प्रकारके वस्त्र, आभूषण, रत्नोंकी भेंट में दिये । साथमें सुरकीति व ध्रुवगतिका भी सन्मान किया । इतने में एक और संतोष की घटना हुई । राजदरबार में जिस समय प्रभासदेवके मिलाप में हर्षसंलाप हो रहा था, उस समय उधर महलमें पांच रानियोंने पांच पुत्र रत्नोंको प्रसव किया है । श्रीमाला, बनमाला, गुणदेवी, मणिदेवी और हेमाजी नामक पाँच रानियोंने अत्यन्त सुन्दर पाँच पुत्रोंको जन्म दिया है। जो कामदेव के पंचबाणोंको भी तिरस्कृत कर रहे थे । अन्तःपुरसे पंचपुत्रों की उत्पत्ति के समाचारको लेकर जो दासियाँ आई हैं वे बहुत चातुर्य के साथ आ रही हैं। क्योंकि उनको भेजनेवाली रानियाँ भी कम बुद्धिमती नहीं यीं। यदि क्रमले दासियाँ जाकर कहेंगी तो अमुक रानीका पुत्र छोटा है, अमुकका बड़ा है, अमुकने पहिले जन्म लिया इत्यादि सिद्ध हो जायगी । इसलिये दासियोंको एक पंक्तिसे जाकर एक साथ कहनेके लिये उन रानियोंने आदेश दिया था। इसलिये वे दासियों एक पंक्तिमें ही खड़ी होकर भरतेश्वरके दरबारमें आनन्दसे फूलकर आ रही हैं। भरतेश्वरने दूरसे ही देखकर समझ लिया कि ये पांचों दासियाँ पुत्र जन्मके हर्ष समाचारको लेकर आ रही हैं और कोई बात नहीं। पासमें आकर उन पांचोंने पाँच रानियोंको पुत्रोत्पत्ति होनेका समाचार सुनाया। भरतेश्वरको हर्ष हुआ । दासियोंको अपने कण्डमें धारण किये हुये रस्ननिर्मित पाँच हारोंको इनाम दिया। उस दरबारमें उपस्थित राजा व प्रजाओंको यह समाचार सुनकर इतना हर्ष हुआ कि शायद उनके हाथ में ही चक्रवर्तीकी संपत्ति आ गई हो । उसी समय प्रभासां कहने लगा कि स्वामिन्! मैं अपने राज्यमें जाकर वहाँपर क्या कर सकता हूँ। यहाँ रहनेसे ये सब महोत्सव तो देखनेके लिये मिले । मैं बड़ा भाग्यशाली हूँ । उसी समय प्रमासांकने अपने मंत्रीको बुलाकर आज्ञा दी कि तुम जल्दी अपने राज्यमें जाकर अगणित रत्न, वस्त्र, आभूषण वगैरह भेंटके लिये ले आओ। आज्ञा पाकर वह चला गया। भरतेश्वरने भी सबको दरबारसे विदा किया व निर
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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