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________________ २२२ भरनेश वैभव बिगड़ता है ? अगभन सौन्दर्य, बहुत यौवन, आश्चर्यकारक बुद्धिमताको धारण करनेवाले चक्रवर्तीक सामने हमने जो व्यवहार किया इसके लिय धिक्कार हो । मेरे लिए जानी बात साम TES ET. मौन्दर्य प्राप्त रनके लिए मनुष्य को प्रयन्न करना चाहिए। यदि वह नहीं मिलता हो तो आपकी प्रसन्नताको प्राप्त करना वह भी बड़े भाग्य की बात है। भोग और नांगमें रहकर मुक्त होने वाले मोक्षयोगीकी बराबरी इस लोकमे कौन कर सकता है। इत्यादि अनेक प्रकारसे स्तुनिपाटा भट्टांके समान मागधामरने भरतेश्वरकी प्रशंसा की। ___ मागधके बचन राजागा व राजपुत्र वगैरह प्रसन्न होकर कहने लंग कि शावाम ! मागध ! स्वामीके गुणको तुमने यथार्य रूपसे वर्णन किया है । तुम मचमुच में स्वामीके हितको चाहनेवाले हो । तदनन्तर नवीने उमे बैठनेके लिए एक आसन दिलाया व कहा कि मागधामर ! तुम दुष्ट नहीं हो । सज्जन हो। उस आसनपर बैठो। ___म्वामिन् ' मैं बच गया । इस प्रकार कहते हुए मागधामरने माधम लाए हए अनेक उपहागेको भरतश्वरके चरणोंमें समर्पण कर मंत्रीमहित पुनः नमस्कार किया । दरबार में बैठे हुए सभी सज्जनोंन मागधामर की मज्जनताके प्रति प्रशंसा की। बुद्धिसागर पासमें ही बैठा हुआ है। उसके तरफ भरतेशने देखा। वह सम्राटके अभिप्रायको समझकर कहने लगे कि स्वामिन् । मामधामर सज्जन है। व्यन्तर लोक में यह वीरथष्ट है। शीघ्र ही आपकी मेवाके लिए आने योग्य है। देशाधिपनियाक समर्गमें जिनद्रके पुत्रको प्रसन्न करने का भाग्य जिसने पाया है, वह मचमच में कृतार्थ है। इसलिए यह मागध भी धन्य है । नव मागधाम र कहने लगा कि मन्त्री ! तुमने बहुत अच्छा कहा। तुम्हारी बुद्धिमनावो मैंने बहुत बार सुनी है। परन्तु आज प्रत्यक्ष तुम्हें देग्व लिया । मचमुच में तुमने मेरा उद्धार किया। बुद्धिमागग्ने मुसकराते हुए कहा कि स्वामिन् ! इस मागधको वापिम आनेकी आज्ञा दीजियेगा। फिर आगेके मुक्काममें यह अपने पाम आवे । भरनेश्वरने दी समय मागधामरको पास बुलाकर अनेक प्रकारके उत्कृष्ट वम्य व आभूपणोंको जमे दे दिय । मागधदेवने भेटमें जिन अमन्य रत्नोंकी ममर्पण किये थे उनस भी बढ़कर उत्तमोत्तम गलोंको चक्रवर्तीने उमे दे दिये । चक्रवर्तीको किस बातकी कमी है ? केवल अपने चरणोंको नमस्कार करानेकी एक मात्र अभिलाषा जसे
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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