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भरतेश बंभव तब उसने सामने खड़े हुये सेवकोंकी ओर हाथ बढ़ाया। तब राजाको उसकी बुद्धिमत्तापर आश्चर्य हुआ ।
स्वामिन् ! क्या कल्पवृक्षके बीजसे जंगली पेड़की उत्पत्ति हो सकती है ? क्या तुम्हारे पुत्रमें अल्पगुण स्थान पा सकते हैं ? कभी नहीं। इस प्रकार विद्वानोंने उस समय प्रशंसा की।
इस प्रकार अनेक विनोदसे विद्वान् व सेवकोंको सुवर्णदान देकर जब भरत बहुत आनन्दसे विराजमान थे उस समय गाजेबाजेका शब्द सुननेमें आया । आकाश प्रदेशमें ध्वजपताका, विमान इत्यादि दिखने लगे । यह ध्यन्तरोंका सेना थी । समुद्रकों औरस आ रही है । मन्दाकिनी दासीको बुलाकर उसे कुमारको सौंप दिया और महल की ओर ले जानेके लिये कहा और स्वतः मेरुके समान अचल व समुद्रके समान गंभीर होकर विराजमान हुये।
मागधामर आकाश मार्गसे ही भरतेश्वरकी सेनाओंको देखते हुए आ रहा था । उसे उस विशाल सेनाको देखकर आश्चर्य हुआ। उसका पराक्रम जर्जरित हुआ। मनमें ही विचार करने लगा कि इसको मैं कैसे जीत सकता था? इसके साथ वक्रता चल सकती है? कभी नहीं । समुद्रके तटपर ही विमानसे उतरकर स्वामीके दर्शनके लिये भरतेश्वरके दरबारकी ओर पैदल ही चला ।
इतनेमें बीच में ही एक घटना हुई। चुगलीखोरने आकर भरतेश्वर की सेनाके एक योद्धाके साथ कुछ कहा । वह मागधके नगरमें रहता है । परन्तु भरतेश्वरका भक्त है। इसलिये पहिले दिन मागधामरके दरबारमें जो बातचीत हुई उन सबको उसने उससे कह दी।
चक्रवर्तीके प्रति मागधामरने पहिले दिन जो तिरस्कार युक्त वचनों का प्रयोग किया था वह सब उसे मालम हआ। वह योद्धा उससे अत्यधिक क्रोधित हुआ। उसने चुपचापके जाकर भरतेश्वरकी कानमें सब बातोंको कहा व चला गया। __ मागधामर छत्र, चामर इत्यादिक वैभवके चिह्नोंको छोड़कर चक्रवर्तीके दर्शनको आगे बढ़ रहा है । वह दीर्घमुखी है। आयत नेत्रवाला है। दीर्घशरीरी है। साहसी है व अनेक रलमय आभरणोंको उसने धारण किये है।
अपने साथके सब लोगों को बाहर ही ठहरनेके लिये आज्ञा देकर स्वयं व मंत्रीने हाथमें अनेक प्रकारके रल आदि उत्तमोसम उपहारोंको लेकर दरबारमें प्रवेश किया। दरवाजेमें बहुतसे रत्नदण्डको लिये हुए