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.. भरतेश वैभन आलाप व गायकका गांभीर्य वह सब भरतेश्वरके हृदयको प्रसन्न करने काबिल है । जानेदो जी ! आप लोग सबके सब एक रागकी ही प्रशंसा करते जा रहे हैं। हम तो यही कहना चाहते हैं कि श्री गुरुहंसनाथको उसने कोयलके समान गाकर बतलाया, इस प्रकार नागरने कहा। बहुत पटुत्व के साथ उसने मलहरि रागके द्वारा निष्कुटिल आत्मतत्वका वर्णन किया । सरस्वतीने ही शायद चक्रवर्तीका दर्शन किया, इस प्रकार विटने कहा । जिस प्रकार मत्स्य जल में चमकता है उसी प्रकार चम. कीले गायनको उसने गाया, इस प्रकार पीठमर्दकने कहा। नहींजी ! शुष्क मुखवीणामें अध्यात्म औषधरसको भरकर वैषय रोगियोंके कानको ठीक किया है, इस प्रकार विदूषकने कहा।।
इस प्रकार भिन्न-भिन्न प्रकारके वचनोंको सुनते हुए भरतेश्वर मनमें ही सन्तुष्ट हो रहे थे एवं गायनको सुनते हुए जिनके गायनसे प्रसन्न होते थे, उनको अनेक प्रकारसे इनाम भी दे रहे थे।
एक-एक कलासे प्रसन्न होकर व आत्माको विचार करते हुए सिंहासनपर विराजमान हैं। इतने में मंदाकिनी नामक दासीने अर्ककीर्तिकुमारको लाकर सम्राट्के हाथमें दे दिया। ___ स्वामिन् ! राजदरबारमें आनेके लिये कुमारने हट किया है । इसलिये मै यहाँपर लाई हूँ। इतने में सभाका हल्ला-गुल्ला सब बन्द हो गया । सभी लोग उस बच्चेकी सुन्दरता पर मुग्ध होकर देखने लगे।
सम्राट्ने बच्चे को अपनी गोदपर बैठाकर उसके साथ प्रेम संलाप करनेको प्रारंभ किया। वह बालक उस समय बहुत सुन्दर मालूम होने लगा । उत्तम जातिका रत्न जिसप्रकार रत्नोंमें कोई विशेष स्थान रखता है, उसी प्रकार यह रत्न भी कुछ खास विशेषताको लिये हए था।
पिताका ही सौन्दर्य है, पिताका ही रूप है। पिताका ही स्वरूप है, पिताकी ही दृष्टि है। सब कुछ एक ही साँचा है। ऐसा सुन्दर पुत्र गोदपर आनन्दसे बैटा हुआ है। उस कुमारने अनेक रत्न निर्मित आभरणोंको धारण किये था। उससे उसका सौन्दर्य और भी द्विगुणित हो गया था।
एकदफे भरतेश्वर बच्चेकी ओर देखकर हँसते हैं, तो एक बार चुंबन दे रहे हैं । एकदफे उसे उठाते हैं । इस प्रकार अनेक तरहसे उसके साथ प्रेमव्यवहार कर रहे हैं। भरतेश्वर बच्चेको कह रहे हैं कि बेटा! आदितीर्थंकर शब्दको उच्चारण तो करो। तब वह "आदिकर" कहने लगा ! भरतेश्वर हँसने लगे। आत्माका वर्णन करते हुए बच्चेसे कहा