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________________ २१० भरतेश वैभव करते ? यदि आज हम इससे डरें तो आगे विजयार्ध गुफामें रहनेवाले बड़े-बड़े राजाओंको किस प्रकार जीतेंगे। फिर तो उस विजयार्धके उस पार तो हम नहीं जा सकेंगे। आप लोग इस प्रकार निरुत्साहित क्यों होते हो? मेरे लिये यह कोई बड़ी बात नहीं है। एक दफे इस समुद्रतट में परमात्मसंपत्तिका दर्शन कर लंगा 1 बुद्धिसागर ! मेरे लिये तो उस मागवको जीतना डोंबरके खेलके समान है। तुम लोग इतनी चिन्ता क्यों करते हो? मैं परमात्माके शपथपूर्वक कहता हूँ कि उसे मैं अवश्य बशमें कर लंगा, तुम लोग चिन्ता मत करो। जिस समय मैं परमात्माका दर्शन करता हूँ, उस समय कर्मपर्वत भी झर जाते हैं । फिर यह मागध किस खेतकी मूली है ? कल ही लाकर अपनी सेवामें उसे लगा दंगा। आप लोग देखें तो सही। एक बाणको भेज कर उसके अन्तरंगको देखूगा। नाखूनसे जहाँ काम चलता है वहाँ कुल्हाड़ीकी क्या जरूरत है ? उसके लिये आप लोग इतनी चिन्ता क्यों कर रहे हैं ? वह आवे तो ठीक है ! नहीं आवे तो भी ठीक है। क्योंकि मेरी वीरताको बताने के लिये मौका मिलेगा। कर्मसमूहोंको जीतनेके लिये मुझे विचार करना पड़ता है। परन्तु इस समुद्र में कर्म के समान रहनेवाले उस मागधामरको बीतने के लिये इतनी चिन्ता करनेकी क्या जरूरत है? आप लोग मर्मज्ञ हैं, जाइयेगा। ____ में तीन दिनतक ध्यानमें रहकर बादमें उसके पास एक बाण भेज कर यहाँ पर आऊँगा। यह राजयोगांग है। आप लोग सेनाकी रक्षा होशियारीसे करें। इस प्रकार कहते हुए भरतेश्वरने मंत्री व सेनापति को अनेक वस्त्राभूषणों को उपहार में देकर विदा किया। तदनंतर स्वयं समुद्रतटमें गये। वहाँपर पहिलेसे ही विश्वकर्मारत्नने भरतेश्वरको ध्यान करने योग्य प्रशस्त योगालयका निर्माण कर रखा था 1 उसमें प्रवेश कर राजयोगी भरतेश योगमें मग्न हो गये। __ योगशास्त्रमें ध्यानके लिये आठ अंग प्रतिपादित हैं । यम, नियम, पासन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, कोमलधारणा और सुसमाधि इस प्रकार अष्टांगयोगमें भरतेश्वर एकाग्नचित्तसे मग्न हो गये। किसी व्यक्तिको कोई निधि मिली हो, उसे वह जिस प्रकार लोगों के सामने नहीं देखकर एकांतमें लाकर देखता है, उसी प्रकार भरतेश्वर भी उस आत्मनिधिको समुद्रतटके एकांत में लाकर देख रहे हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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