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भरतेश वैभव
१४१ वह राजमहलका मन्दिर है। वहाँ बाहर के लोग नहीं आ सकते, वह एकांत पूजा है। लोगोंकी भीड़ बहुत नहीं है। गणना करनेपर केवल बारह लाखकी संख्या है।
भरतेशकी रानियों की संख्या चार हजार कम एक लाख है। एकएक रानीके साथ ६-१० परिवार स्त्रियों रहती हैं । इस प्रकार कुछ कम दस लाखकी संख्या हुई । जब 'भरतेगकी दालियां, गायनियों, गुरुगुण, अजिकार्य, परिचारक स्त्रियो, वृद्धतिक आदि मिलकर लगभग डेढ़ लाम्ब हैं। सम्राटके अभिषेक व पूजनको देखकर उपस्थित १२ लाख जनताको हर्ष हआ । कैलाश पर्वतपर भरतेश्वर जब भगवान् आदिनाथका पूजन करेंगे तब उसे देखने को ढाई द्वीपके समस्त भव्य आयेंगे व प्रसन्न होंगे, तब फिर आज १२ लाखको संख्या में आगत भव्य प्रसन्न हुए इसमें आश्चर्य ही क्या है ? । ___कैलाश पर्वतपर ७२ जिनमन्दिरोंका निर्माण कर, उनमें पांचसो धनुष ऊंचे जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा देवोंको भी आश्चर्य उत्पन्न करती है। उस प्रकार कार्य करनेवाले भरतेवरको सपना मा यहीं बात है? ____ भगवान् आदिनाथ स्वामी तब मुक्ति जायेंगे उस समय १४ रोजतक भरतेश्वर जो भगवानकी पूजा करेंगे वह लोकमें दुर्लभ हैं। उस समय देवलोक, नरलोक व नागलोकके सर्व भव्य भरतेशके वैभवको सिर झुकायेंगे। दो आँखें तो उसे देखने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। यह केवल पर्व दिन में की गई सामान्य संकल्प-पूजन है । अन्तमें सम्राट्ने सबको गन्धोदक दिलाया। ___ अब १२ बजेका समय हो गया । गायक आदि भरतेशकी आज्ञा पाकर चले गये। वृद्धवतिक भी भरतशके चरणोंको नमस्कार कर चले गये। ___ आज अपनी रानियोंके माथ मम्राट् इमी मन्दिरमें जागरणसे रहने वाले हैं। यह जानकर मुनिगण "हे भव्य ! सुखसे रहो'' इस प्रकार आशीर्वाद देकर नगर मध्यकें अन्य मन्दिर में चले गये । इसी प्रकार अजिंकायें भी चली गईं। अपनी रानियोंको छोड़कर दोष सबको सम्राट्ने आशा दी कि अब आप लोग चले जाइये । अब एकाशनके लिए बहुत देरी हो गई है।।
अब मन्दिरमें लोकांत नहीं रहा है। एकांत हो गया है । आज सम्राट् व्रतसतियोंके साथ धर्मचर्चा आदिसे ही समय व्यतीत करेंगे ।