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भरतेश वैभव है ? स्त्रियों के पासमें रहते हुए भी निश्चलताके साथ आत्मसाधना करनेका उन्होंने अभ्यास किया है। पद्मिनीको आतुरता व अधीरता हुई है। अब सहनशीलता नहीं रही। अब भरतेशके चरण स्पर्श कर दीनतासे प्रार्थना कर रही है कि प्राणेश्वर ! मुझे आनन्दित कीजिये। तथापि भरतेश आँखें नहीं खोल रहे हैं । आत्मयोगमें मग्न हैं । इसे देखकर इसे भी उपाय है, मुझे वह मालूम है' यह कहकर पद्मिनी भरतेशकी चित्तवृत्तिको अनुभवसे कहने लगी।
राजन ! आँखे खोलिये, नहीं तो आपको चिदंबरपुरुषकी शपथ है । पतिदेव ! अब तो इधर देखिये।
अब भरलेशने मृदु-हास्य करते हुए नेत्र खोले। सद्गुरुके दापथका उल्लंघन चे कैसे कर सकते हैं ? आँखें खोलते ही उसे एक चुम्बन दिया एवं गाढ आलिंगन देकर उसे रोमांचित कर दिया। पगिनीको अब स्वर्ग दो अंगुल ही रह गया है । अब दो ओढ़नी नहीं है। दोनों ही एक ही ओढ़नीके अंदर आये हैं। परस्पर आलिंगन देकर रतिक्रीड़ा कर रहे हैं। उससे आगेका वर्णन स्पष्ट रूपसे करना बुद्धिमत्ता नहीं है। वह भरतेश बुद्धिमान है। वह बुद्धिमती है। बुद्धिमान् ब बुद्धिमतीने परस्पर गाढ आलिंगन किया इतना कहना पर्याप्त है।
उत्तम नायक उत्तम नायिकासे जब मिलता है तब परस्परके उत्तम चित्तको पक्व किये बिना छोड़ता है क्या ? प्रिय व प्रेयसी जिस समय मिलते हैं उस समय कोमल मोटे स्तन, ओष्ट, मुख परस्पर संघट्ट हुए विना रह सकते हैं क्या ? सुन्दर स्त्री पुरुषोंके संसर्गकार्य में कपड़े इधर उधर हो ही जाते हैं तो एकमेकके अंग-प्रत्यंगोंको वे देखे बिना रहते हैं क्या? उस समय उनका चित्त आनन्दसे नाचता नहीं क्या ? जिस समय दम्पति प्रेमालिंगनमे मग्न होते हैं उस समय आभूषणोंकी ध्वनि, • शय्यासनके शब्द परस्परके सीत्कारमें मिलकर नवीन सुस्वरको उत्पन्न करते हैं।
विशेष क्या ? उस समयका बातावरण ही अलग होता है परस्परालिंगन, चुम्बन, कुचमर्दन, मृदुलहास्य, परस्पर कामप्रचोदन आदि सर्व व्यवहार उन राजदंपतियोंम हुए, इसके वर्णन करनेकी क्या आवश्यकता है?
भरतेश्वर उस पद्मिनीके साथ खूब क्रीड़ा कर तृप्त हुए, वह उनके साथ मनसोक्त संगमकर मूछित हुई, फिर एकदम दोनों ही उठे 1 हाथ पैर धोकर वस्त्र बदल लिये तदनन्तर परस्पर आलिंगन देकर दोनों ही उस मंचपर निद्रित हुए अब उन्हें मंगल निद्रा आई है।
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