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भरतेश वैभव
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हम परिस्थितिको जल्दी सुधार लेंगी । पुनः उन्होंने राजाकी ओर देखकर कहा कि राजन् ! आप अपने मुखका परदा निकालिए । उसके आराधका परिमार्जन हम लोग कर देंगी। इस धूर्ताके लिए आप मुंह ढक लें यह क्या उचित है ?
भरतेश्वर --उसकी तरफसे दंड क्या दिलाती हो यह पहिले बोलो। स्त्रियाँ कहने लगी कि उसे पहिले अापके हवाले कर देते हैं। फिर आपको जो करना हो करो। पुरुषोंके प्रति अपराध करनेवाली स्त्री यदि पतिदेवके शरण में जाकर उनकी आज्ञानुवर्तिनी होती है तो वहीं उसे सबसे बड़ा दंड है । आज यह आपके शय्यागृह में आयेगी। हम सबर्वी इसमें सम्मति हैं। अब तो मुखवस्त्रोदघाटन कीजिये पतिदेव ! यह कहती हुई सब स्त्रियोंने भरतेश चग्णोंमें नमस्कार किया ।
रतेश्वर तुम्हारी बात मानना जरूरी हो तो मेरी भी एक बार आम लोगोंको माननी होगी।
सब स्त्रियोंने उत्साहके साथ कहा कि हम सब तैयार हैं। क्या आदेश है ? फरमाइये। उसी समय मंहका वस्त्र भरतेश्वरने सरका दिया । मेघाच्छादित चंद्र अब मेघमंडलके बाहर आनेके समान मालूम होने लगा है। हाय! आज हमारे राजाने बिनाकारण मंह ढक लिया। यह योग्य नहीं हुआ। इसलिए सब स्त्रियोंने मोतीकी अक्षता लगाकर आरती उतारी। भरतेश्वर स्त्रियोंकी भक्ति देखकर आनंदित हुए। - उन सबको बुलाकर भरतेशने यथेच्छ वस्त्राभरण प्रदान किया; उन्होंने लेनेके लिए संकोच किया तो कहा कि तुमने मेरी बात सुननेका वचन दिया है।
सबको क्रमश: देने में देरी होगी इस विचारसे अपने अनेक रूप बनाने के लिए आँख मींच लिया और परमात्माका स्मरण किया । उत्तम अपराजित मन्त्रका जाप्य दिया, उसी समय भरतेश बहा अनेक रूपोंमें दिखने लगे। सर्व स्त्रियोंके माथ अब अलग-अलग भरतेश दिख रहा है, भरतेश रहित एक भी स्त्री वहाँपर नहीं है। भरतश्वरके अतिशयको देखकर सभी स्त्रियाँ आश्चर्य चकित हई, उसके साथ ही उन्हें परमानन्द भी हुआ।
सिंहासनमें मूल शरीर है, अनेक उत्तर शरीर शाखाके रूपमें हैं । अनेक शरीरोंमें वह आत्मा है, परन्तु आत्मा एक ही है । इस प्रकारका अनुभव सबको हो रहा है, स्यात्कारका विरोध करनेवाले ब्रह्माद्वैतका