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________________ बादामी / 55 बादामी अवस्थिति एवं मार्ग ___ सड़क-मार्ग द्वारा बागलकोट से बादामी की दूरी 79 कि. मी. है। पुराने किन्तु अभी भी प्रचलित नक्शों में ठीक-ठीक मार्ग एवं दूरी ज्ञात नहीं होती। किन्तु 1984 में कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा प्रकाशित नक्शों के अनुसार, बागलकोट से कमटगी जाना चाहिए और वहाँ से बादामी। इस मार्ग पर कर्नाटक सरकार की सेमो लक्ज़री बसें भो चलती हैं। रेल द्वारा यात्रा करने वालों के लिए शोलापुर-हुबली रेलवे लाइन पर बागलकोट से आगे बादामी रेलवे स्टेशन मिलता है । यहाँ पहुँचने पर यात्रियों को कुछ असुविधा हो सकती है, क्योंकि बादामी तालुक से स्टेशन चार-पाँच किलोमीटर की दूरी पर है और सवारी के नाम पर केवल ताँगा ही उपलब्ध है। यहाँ ठहरने के लिए गैर-सरकारी अच्छे होटल नहीं हैं, न ही जैन-धर्मशाला है । पर्यटन विभाग का होटल कुछ महँगा है। इस असुविधा की चिन्ता नहीं करते हुए भी बादामी अवश्य देखना चाहिए। जैन पर्यटकों के लिए यहाँ का जैन गुफा-मन्दिर दर्शनीय है जिसे जी भरकर देखने-समझने के लिए कम-सेकम आधा दिन आवश्यक है। इस स्थान का प्राचीन नाम बादामि, वातापी (पि) पुरो, बादावी अथवा बादामी अधिष्ठान था। एक ऐतिहासिक नगर ___ आज का बादामी किसी समय एक ऐतिहासिक नगर था । यहाँ चालुक्य राजाओं का शासन छठी शताब्दी से आठवीं शताब्दी तक रहा, जबकि यह नगर इन राजाओं की राजधानी रहा । चालुक्यनरेश मंगलेश ने राजधानी ऐहोल से हटाकर यहाँ स्थापित की थी। एक खड़ा ऊँचा पहाड़ और एक विशाल झोल उस समय राजधानी के लिए उपयुक्त समझे गए होंगे। ___ चालुक्य राजाओं के समय में यह नगर धर्म, संस्कृति, कला और विद्वत्ता का केन्द्र था। संगीत के क्षेत्र में आज भी बादामी को स्मरण किया जाता है। दक्षिण भारत में कर्नाटक संगीत प्रारम्भ करने से पहले 'वातापि-गणपतिं भजे' अर्थात 'वातापि के गणपति को स्मरण करता हूँ' वन्दना की जाती है। इसका कारण यह है कि यहाँ दो चक्रवतियों-तृतीय सोमेश्वर तथा उसके पुत्र जगदेकमल्ल ने सबसे पहले संगीत के प्रकरणबद्ध ग्रन्थ की रचना की थी। जहाँ तक कला का प्रश्न है, यहाँ के गुफा-मन्दिर आज भी उसका प्रमाण दे रहे हैं। - चालुक्य शासक वैसे तो वैष्णव धर्म के अनुयायी थे किन्तु उन्होंने शैव, जैन और अन्य धर्मों को भी पर्याप्त प्रोत्साहन दिया था एवं वे उनका आदर करते थे। यहाँ एक ही पहाड़ में थोड़े-थोड़े अन्तर से निर्मित वैष्णव, शैव और जैन गुफा-मन्दिर इसका प्रत्यक्ष परिचय देते हैं। मन्दिरों और दुर्ग-निर्माण में भी ये आगे थे। चालुक्यनरेश मंगलेश ने इस नगरी में गुफामन्दिरों का प्रारम्भ किया था ऐसा माना जाता है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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