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________________ पणजी, गोआ | 39 क्षेत्र को भगवान महावीर अभयारण्य' घोषित कर दिया है। यात्री इस आशय का मेहराबदार बोर्ड सड़क के ऊपर लगा हुआ देख सकते हैं। गोआ सरकार के चेक पोस्ट, विशेषकर पणजी से मोले की ओर आकर, इस अभयारण्य में प्रवेश करने वाले यात्रियों की इस बात की भी जाँच करते हैं कि वे कहीं शिकार के लिए तो नहीं जा रहे। उपर्युक्त जाँच-चौकी के पास गोआ सरकार का एक पर्यटक-क्षेत्र (टूरिस्ट काम्प्लेक्स) है। संध्या हो जाने या कुछ देर वन के प्रवेश क्षेत्र के पास जो यात्री विश्राम या शान्ति चाहते हैं वे यहाँ ठहर सकते हैं। जाँच-चौकी के पास कुछ दूकानें भी हैं। मोले से पणजी केवल 58 कि. मी. है। मोले पर समाप्त होने वाले जंगल-घाट के बाद तिस्को नामक स्थान आता है। यहाँ से रास्ता ठीक है। तिस्को से पोण्डा (Ponda) होकर पण केवल 29 कि. मी. है। पूरे रास्ते काजू और नारियल के वृक्ष पर्यटक का मन मोह लेते हैं । पोण्डा में अन्य सम्प्रदायों के मन्दिर और चर्च आदि हैं। गोआ में जैन धर्म पणजी से 10 कि. मी. पहले पुराना गोआ (Old Goa या Veha Goa) रास्ते में आता है। बताया जाता है कि यहाँ जैनधर्म से सम्बन्धित कुछ शिलालेख पाए गए थे जो कि इस समय कलकत्ता संग्रहालय में हैं। वास्तव में, गोआ में जैनधर्म सम्बन्धी खोज-कार्य अभी नहीं हुआ है। दिल्ली से प्रकाशित 'हिन्दुस्तान टाइम्स' में श्री पी. एम. खण्डेपर्कर (Khandeparker)का एक लेख Jainism once Flourished in Goa' प्रकाशित हआ है। उसी के आधार पर यहाँ कुछ और जानकारी दी जा रही है। बिचोलिम तथा पोण्डा तालुक के बाँदोड में जैन बसदियाँ तथा ताम्बडी सुरला (Tambdi Surla) और कोर्टलिम (Cortalim) से प्राप्त जैन प्रतिमाएँ इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि गोआ में जैनधर्म का दूरगामी प्रभाव था। हारवलेम (Harvalem) जलप्रपात के पास जो गुफाएँ मिली हैं वे भी, कुछ विद्वानों के अनुसार, जैन गुफाएँ हैं। गोआ के बिचोलिम तालुक में कुडनेम (Kudnem) नामक एक प्राचीन जैन मन्दिर और उसका मण्डप प्रकाश में आया है । वह 'गुजिरांचे देउल' कहलाता था जिसका अर्थ है गुजरातियों का मन्दिर । यह गुजरातियों का बनवाया जान पड़ता है जो कि पुर्तगालियों के आक्रमण के समय बेलगाँव भाग गए (पुर्तगालियों ने अनेक जैन मन्दिर नष्ट किए थे ) ताकि वे ईसाई नहीं बनाए जा सकें। कहा जाता है कि गुजराती लोग यहाँ की यात्रा करने आते हैं। इस मन्दिर का ध्वंस 15वीं सदी में हुआ प्रतीत होता है। उपर्युक्त मन्दिर में गर्भगृह, मुखमण्डप और तीर्थंकर प्रतिमा हैं। इस मन्दिर की निर्माणशैली भी नागर है। ऊँची चौकी और ऊँचा शिखर इसको काफी ऊँचाई का आभास देते हैं। सम्भवतः इसी के अनुकरण पर और भी मन्दिर बने हों जो अब नष्ट हो गए। इस स्थान के तालाब की सफाई करते समय तीर्थकर मूर्ति का जो मस्तक मिला है वह कदम्ब राजाओं के ज़माने का हो सकता है। तीर्थंकरों की खण्डित मूर्तियाँ पुराने गोआ के चर्च के अहाते में स्थित पुरातत्त्व विभाग के संग्रहालय में हैं। पुराने गोआ में सेंट फ्रांसिस द एसिसी की कन्वेण्ट के प्रांगण से एक शिलापट्ट 1425-3३
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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