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________________ है । बेलगाँव / 37 अपनी व्यापारिक गतिविधियों के कारण बेलगाँव को 'बम्बई का बच्चा' भी कहा जाता यहाँ हिन्दी, मराठी और कन्नड बोली तथा समझी जाती है । बेलगाँव जिले के अन्य जैन स्थल बेलगाँव जिले के अन्य स्थानों में भी जैन धर्म की प्रभावना है। ये हैं-अम्मनगी (Ammanagi, हुक्केरी तालुक) में पार्श्व बसदि - दसवीं - ग्यारहवीं सदी, देगाँव (बेलगाँव ज़िला), कदकलत (Kadaklat, हुक्केरी तालुक) में पार्श्व बसदि, कागवाड़ (Kagvad, अथानी तालुक ) में महावीर बसदि, कल्लुहोले ( Kalluhole, बेलगाँव जिला ) में शिलालेख, खानापुर (Khanapur, इसी नाम का तालुक - परिचय गोआ के मार्ग में दिया जाएगा), कोण्णूरु (Konnur, गोकाक तालुक) में शिलालेख, नेरलिगे ( Neralige, बेलगाँव जिला - यहाँ का वीरभद्र मन्दिर पहले जैन मन्दिर था) में शिलालेख, पलासिके ( Palasike, खानापुर तालुक) में शिलालेख, रायबाग (Raybag, अथानी तालुक) में गुड्डड बसदि एवं आदिनाथ बसदि । (देखें चित्र क्र. 3), संकेश्वर (Sankheshwar ,चिकोडी तालुक) में पार्श्वनाथ बसदि, सौदत्ति (Saudatti, इसी नाम का तालुक) के क़िले में महावीर बसदि, यादवाड (Yadvad, गोकाक तालुक) में पार्श्व बसदि तथा यमकनमर्दी (Yamakanmardi, बेलगाँव तालुक) में पार्श्वनाथ बसदि । बेलगाँव से प्रस्थान- कुछ लोग यहाँ से रेल या सड़क मार्ग द्वारा गोआ ( उसकी राजधानी पणजी) जाते हैं । विशेष सूचना उत्तर भारत से पर्यटन बस ले जाने वाले अक्सर लोगों को बेलगाँव की 'कमल बसदि ' भी नहीं दिखाते हैं और बेलगाँव या पणजी से पर्यटकों को धारवाड़, हुबली होते हुए 'जोगप्रपात' ( फाल्स) ले जाते हैं । किन्तु यह ठीक नहीं है। धारवाड़, हुबली पास में जरूर हैं किन्तु इनकी यात्रा बाद में करनी चाहिए। ऐसे पर्यटक दो-तीन ऐसे स्थानों से वंचित रह जाते हैं जो इतिहास, कला और स्थापत्य में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुके हैं । ये हैं (1) ऐहोल, पट्टदकल और बादामी के मन्दिर तथा गुफाएँ, (2) लक्कुण्डी का जिनालय एवं संग्रहालय तथा ( 3 ) हम्पी - विश्व इतिहास में प्रसिद्ध विजयनगर साम्राज्य की राजधानी जिसकी कला आदि के खण्डहर तुंगभद्रा नदी के किनारे-किनारे 26 कि. मी. क्षेत्र में फैले हुए हैं। इनमें जैन स्मारक भी हैं। इस क्षेत्र का पहले पर्यटन किलोमीटर की दृष्टि से भी ठीक बैठता है । अतः गोआ भ्रमण के बाद पुनः बेलगाँव आकर इन स्थानों की ओर प्रस्थान उचित होगा ।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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