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________________ बेलगाँव | 35 निवास है । यहाँ एक दिगम्बर जैन मन्दिर है । यह बसदि भी बहुत पुरानी एवं छोटी-सी है किन्तु उसका कुछ विस्तार किया गया है । यह मन्दिर मुश्किल से 20 फुट चौड़ा और 20 फुट लम्बा जान पड़ता है। उसके आसपास खुली जगह है । मन्दिर पत्थर का बना हुआ है और उस खर नहीं है। इस मन्दिर के साथ एक जनश्रति जडी हई है जो कि बेलगाँव के नाम की सार्थकता बताती है और यह संकेत देती है कि बेलगाँव में 108 जैन मन्दिर क्यों थे। कहा जाता है कि छोटी-सी पहाड़ी पर स्थित इस छोटे-से मन्दिर के आसपास बाँसों का घना जंगल था। इसी कारण यह नगर वेणुग्राम (आगे चलकर बेलगाँव) कहलाता था। यहाँ 108 स्वामी थे। वे सब-के-सब यहाँ दावानल में भस्म हो गए। उनके साथ ही 108 मन्दिर भी नष्ट हो गए। यहाँ के राजा ने जब यह समाचार जाना तो उसे बड़ा दुःख हआ। इसलिए उसने प्रायश्चित के रूप में किले के क्षेत्र में 108 जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था। शाहपुर (कोरेगली)-गोमटेशनगर से कोरेगली जा सकते हैं। यहाँ भी एक प्राचीन मन्दिर है जोकि बड़ा है। उसका जीर्णोद्धार वीर निर्वाण संवत् 2452 में हुआ था। इसके गर्भगृह में संगमरमर की लगभग 3 फुट ऊँची पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा है जिस पर सात फणों की छाया है। यहाँ चौबीसी एवं नन्दीश्वर हैं। चन्द्रप्रभ की काले पाषाण की भी लगभग चार फुट ऊँची पद्मासन प्रतिमा है। संगमरमर की कायोत्सर्ग पार्श्व-मूर्ति भी है जिस पर छत्रत्रय है। बाहर पद्मावती एवं ज्वालामालिनी भी विराजमान हैं। इसका हॉल बड़ा है। उसमें पाषाण के स्तम्भ हैं । मन्दिर के सिरदल पर पद्मासन में तीर्थंकर प्रतिमा उत्कीर्ण है। मन्दिर के सामने सुन्दर नक्काशीदार मानस्तम्भ भी है। उपर्युक्त मन्दिर के ही सामने एक साधारण-सा दिखनेवाला मकान (क्रमांक 1993) है। इसके भीतर भी एक प्राचीन अतिशययक्त मन्दिर है जिसका नाम है 'पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर' कोरेगली, शाहपुर । यह मन्दिर पाषाण निर्मित है। इस पर न तो शिखर है और न ही सामने कोई मानस्तम्भ । किन्तु इस मन्दिर में सुन्दर, सातिशय मूर्तियाँ हैं। इसके गर्भगृह में लगभग तीन फुट ऊँची सप्त फणावलियुक्त एवं कायोत्सर्ग मुद्रा में पार्श्वनाथ की मूर्ति है। मूर्ति मकरतोरण युक्त है। यहीं श्रुतस्कन्ध और कांस्य की एक चौबीसी है जो कि 'उत्सवमूति' कहलाती है । इसके मूलनायक कायोत्सर्ग मुद्रा में भगवान् महावीर हैं। उनके आसपास चाप के आकार में अन्य तेईस तीर्थंकरों की पद्मासन मुद्रा में छोटी-छोटी मूर्तियाँ प्रदशित हैं। यह चौबीसी भी मकरतोरण युक्त है । उसका अलंकरण आकर्षक व मोहक है और उस पर चंवरधारी तथा यक्ष-यक्षी भी उत्कीर्ण हैं। संगमरमर के बाहुबली तथा कांस्य के आदिनाथ कायोत्सर्ग मद्रा में हैं। एक त्रिति या रत्नत्रय मति भी यहाँ है। सर्वात यक्ष तथा पदमावती एवं ज्वालामालिनी की प्रतिमाएँ भी यहाँ हैं । कांस्य की एक और चौबीसी भी यहाँ है। __अतिशय- इस मन्दिर की पार्श्वनाथ की मूर्ति लगभग 450 वर्ष पूर्व दांडेलि जंगल के एक कुएँ में से प्राप्त हुई थी। अनेक लोगों का अनुभव है कि जो व्यक्ति भक्ति-भाव से इस मूर्ति की पूजा करता है उसे अपने सामने ऐसा दिखाई पड़ता है मानो भगवान् की आँखों से पानी झर रहा है। यदि उस व्यक्ति के अच्छे दिन हैं या आनेवाले हैं तो मूर्ति के मुख पर हल्की-सी मुस्कान दिखाई पड़ती है । यदि उस पर कोई संकट आनेवाला हो, तो उसकी दृष्टि में मूर्ति की मुद्रा
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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