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________________ कोलार जिला / 303 दायें भाग में ब्रह्मदेव का स्थान है। इस पहाड़ को दक्षिण की तरफ से देखने पर वह एक हाथी जैसा लगता है। गिरि के चारों ओर का प्राकृतिक दृश्य सुहावना है। यहाँ के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि उपर्युक्त जिनालयों का निर्माण बारहवीं सदी में हुआ था। उस समय यह स्थान होय्सलनरेश बल्लाल नरसिंहराज के सेनापति यतियंग के अधीन था। प्राचीन समय में यह पुण्यक्षेत्र माना जाता था। लगभग 60-70 वर्ष पूर्व जब मुनि पायसागर यहाँ पधारे, तब उन्होंने तुमकूरु के जैन बन्धुओं को इन मन्दिरों के जीर्णोद्धार की प्रेरणा दी। ऐसा ही किया गया और नित्य पूजा की व्यवस्था भी की गई । तुमकूरु के जैनबन्धु प्रतिवर्ष चन्द्रप्रभ का जन्माभिषेक बड़े उत्साह और उल्लास के साथ यहाँ सम्पन्न करते हैं। faeza (Nitturu) तुमकूर ज़िले के इस स्थान पर बारहवीं सदी के मध्य में निर्मित एक शान्तीश्वर बसदि है। उसमें अब मूलमूर्ति नहीं है किन्तु अन्य मूर्ति स्थापित कर दी गई है । इस बसदि की छत में अष्ट दिक्पाल कोष्ठों में उत्कीर्ण हैं। बाहर की भीत पर पद्मासन एवं खड्गासन अधूरी (अधिकांश) मूर्तियाँ हैं। कुछ देवकोष्ठ भी हैं। .. इस स्थान पर चन्द्रप्रभ की यक्षिणी ज्वालामालिनी प्रतिष्ठित है। प्रत्येक बृहस्पतिवार को यहाँ ज्वालामालिनी की विशेष पूजन होती है। उसमें दूर-दूर से आकर लोग सम्मिलित होते हैं । गुब्बी और अदलगिरे गाँव के निवासी इस क्षेत्र की अभिवृद्धि में रुचि लेते हैं। हेग्गेरे (Heggere) यहाँ की पार्श्वनाथ बसदि काले पाषाण से निर्मित है। इस बसदि का निर्माण 1160 ई. के लगभग हुआ था ऐसा अनुमान किया जाता है। होय्सल कला से सज्जित यह एक सुन्दर मन्दिर है। उसके मण्डप और नवरंग अभी सुरक्षित हैं। नवरंग चार स्तम्भों पर आधारित है तथा शुकनासा से युक्त है। बाहर की दीवालों पर पुष्पवल्लरी की सुन्दर पट्टियाँ बनाई गई हैं। कोलार जिला तमिलनाडु की सीमा को छूता, बंगलोर से पूर्व की ओर स्थित यह ज़िला आजकल अपनी स्वर्ण खदानों के लिए प्रसिद्ध है। इसका प्राचीन नाम कुवलालपुर है । इस क्षेत्र के जैनस्थलों का विधिवत् सर्वेक्षण नहीं हुआ है। अरकेरी गाँव के बसवण्ण मन्दिर में एक पत्थर पर प्राचीन कन्नड़ में 940 ई. का एक कुछ-कुछ स्पष्ट शिलालेख है जिसमें कुवलालपुरवेश्वर पेर्मानडि का उल्लेख है। उसमें कोपणक्षेत्र का निर्देश करते हुए शापात्मक श्लोक हैं और भोगपति (शासनाधिकारी) गाँव दान की सुरक्षा करे ऐसी प्रार्थना की गई है। इससे इस जिले में जैनधर्मानुयायी पदाधिकारियों द्वारा दान आदि का पता चलता है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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