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________________ 290 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) - मैसूर-यात्रा से पहिले बंगलोर जिले के कुछ जैन स्थलों का भी परिचय प्राप्त कर लिया जाए जो कि यात्रा-क्रम में सम्मिलित नहीं हैं। बंगलोर जिले के अन्य जैन केन्द्र शान्तिगत्त यहाँ वर्धमान बसदि नाम का एक जिनमन्दिर है। इसमें पद्मावती, ज्वालामालिनी, सरस्वती, पंचपरमेष्ठी, नवदेवता आदि की धातु-निर्मित आसीन मूर्तियाँ हैं। भगवान महावीर की मूर्ति पर एक शिलालेख है जिसमें विनयादित्य से नरसिंह प्रथम (1141-73 ई.) तक के होय्सल राजाओं की वंशावली दी गई है। इससे यह जान पड़ता है कि इस मन्दिर का निर्माण बारहवीं सदी में हुआ होगा। मूर्ति लगभग तीन फुट ऊँची है और सुन्दर प्रभावली से अलंकृत मण्णे (मात्यनगर) नेलमंगल तालुक में स्थित इस स्थान के शिलालेख से ज्ञात होता है कि गंगकुल के लिए सूर्य के समान महाराजाधिराज परमेश्वर शिवमार के पुत्र मारसिंग के राज्य-काल में इस शासक के सेनापति श्रीविजय ने यहाँ 997 ई. में एक जिनमन्दिर बनवाया था और उस मन्दिर के लिए 'रिष्टवेक्कूरु' नामक गाँव भी दान में प्राप्त किया था। यह भी उल्लेख है कि उपर्युक्त स्थान के पास के शाल्वली ग्राम के श्रावक बप्पय्या ने मात्यपुर के दक्षिण में स्थित जिनमन्दिर के लिए 'पर्व डियूर' गाँव दान में दिया था। यहीं पर देवेन्द्र भट्टारक की शिष्या भारब्बेकन्ति की भी समाधि है। नन्दि बंगलोर जिले के चिक्कवळळापुर तालुक में स्थित यह स्थान प्रसिद्ध विश्रामधाम है। यहाँ के गोपीनाथ पर्वत पर स्थित गोपालस्वामी मन्दिर के प्रांगण में एक शिलालेख है। उसमें उल्लेख है कि द्वापरकाल में दशरथ के पुत्र श्री रामचन्द्रजी ने यहाँ पर अर्हन्त परमेष्ठी का एक चैत्यालय बनवाया था और उस में पूजन की थी। शिलालेख यह भी कथन करता है कि पाण्डवों के समय कुन्ती ने उसका जीर्णोद्धार कराया था। इस बसदि के विषय में शिलालेख में कहा गया है कि वह भूदेवी के तिलक के समान है, स्वर्ग-मोक्ष के लिए सीढ़ी है, पर्वतों में श्रेष्ठ है और जिनबिम्ब के सान्निध्य से पवित्र है। मुनियों की तपस्या के लिए यहाँ गुफाओं का भी निर्माण किया गया था। यहाँ का 'श्री कुन्दपर्वत' पूजा, तप, और अध्ययन के पवित्र वातावरण के कारण सदा हरा-भरा रहता था। कुछ विद्वानों ने यह सम्भावना व्यक्त की है कि कुंदकुंदाचार्य ने यहाँ भी तपस्या की होगी।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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