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________________ 4 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) कमठान : भूमिगत पार्श्वनाथ मार्ग और अवस्थिति यह स्थान बीदर से सड़क मार्ग द्वारा 11 कि. मी. की दूरी पर है। यह बीदर जिले का ही एक गाँव है। 'कमठान' का नाम सुनते ही यह भाषावैज्ञानिक सम्भावना सामने आती हैकि कहीं प्राचीन समय का कमठस्थान ही तो घिस-पिटकर कमठान नहीं हो गया ? यहाँ की पार्श्वनाथ प्रतिमा और उसका कुछ अतिशय इस सम्भावना को पुष्ट करता जान पड़ता है। जैन पौराणिक वर्णन के अनुसार तो, कमठ ने भगवान पार्श्वनाथ पर उत्तरप्रदेश के अहिच्छत्र (रामनगर) में उपसर्ग किये थे। एक अन्य दृष्टि यह भी हो सकती है कि इस स्थान का कमठ से कोई सम्बन्ध रहा हो या इस स्थान पर भी उसने पार्श्वप्रभु पर उपसर्ग किया हो। भगवान ने 100 वर्ष की आयु पायी थी और 70 वर्ष मुनि अवस्था में देश-विदेश का भ्रमण कर जैन धर्म का उपदेश दिया था। यह अत्यन्त सम्भव है कि यहाँ भी उनका विहार हुआ हो। उनका युग बीते भी तो अभी कुल 276 3 वर्ष ही हुए हैं (भगवान महावीर का निर्माण 2513 वर्ष पूर्व, उनसे 250 वर्ष पूर्व भगवान पार्श्वनाथ का निर्माण-कुल 2763 वर्ष)। इसका अर्थ यह हुआ कि बैर और क्षमा अर्थात् कमठ का उपसर्ग और पार्श्वनाथ की अनन्त क्षमा 2763+70 (पार्श्व का मुनि-जीवन) =2833 वर्षों के बीच की कहानी है और इस अवधि में कमठस्थान का कमठान हो जाना कोई असम्भव बात नहीं है । जो भी हो, इस विषय में गम्भीर खोज की आवश्यकता है। भगवान पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर (यह नाम यहाँ नागरी लिपि में लिखा हुआ है) यह कमठान गाँव के अन्त में पीछे की ओर स्थित है। वहाँ तक कार या बस भी जा सकती है। यह पत्थरों का बना छोटा-सा एक प्राचीन मन्दिर है । मन्दिर के मूलनायक पार्श्वनाथ अर्धपद्मासन में भूमिगत गर्भगृह में विराजमान हैं। यह गर्भगह एक चट्टान के नीचे है। मूर्ति लगभग साढ़े तीन फुट ऊँची है और ग्यारहवीं शताब्दी की है। उस पर पुरानी कन्नड़ में एक लेख भी है। मूर्ति के प्रक्षाल आदि का जल गर्भगृह की दीवाल के साथ लगी लगभग 3 फुट x 2 फुट की एक कुई (छोटा कुआ) में गिरता है। उसी से अभिषेक के लिए जल भी लिया जाता है । जनश्रुति है कि इसी कुई के मार्ग से एक मोटा-सा सर्प कभीकभी पार्श्वनाथ की मूर्ति के सामने आता है और घण्टे आध घण्टे बैठकर चला जाता है। मूर्ति के अर्चक का यह भी कथन है कि उसने मूर्ति पर हास्य, प्रसन्नता या शान्ति के भाव अनेक बार अनुभव किये हैं। इस प्रकार यह प्राचीन मूर्ति अतिशययुक्त मानी जाती है। उपर्युक्त भूमिगत गर्भगृह या चट्टान के ऊपर एक साधारण-सी वेदी बनी हुई है जिस पर पद्मासन में संगमरमर के पार्श्वनाथ विराजमान हैं । ललितासन में धरणेन्द्र की एक मूर्ति है जो कि ग्यारहवीं सदी की अनुमानित है। मूर्ति पर नौ फण हैं।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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