SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हासन जिले के अन्य जैन स्थल | 283 पश्चिमी घाट की सह्याद्रि श्रेणी के दक्षिण में, रम्य वनप्रदेश में स्थित यह स्थान . होयसलों का 'पीहर' कहलाता है। शिलालेख के अनुसार, होयसल वंश का मल पुरुष 'सल' था। कथन है कि एक बार जब वह अपनी पुत्रवधू के गाँव में अपनी कुलदेवता 'वासंतिका' की पूजन के लिए गया हुआ था, तब मुनि सुदत्त वहाँ उपदेश कर रहे थे। उसी समय एक शेर दहाड़ता हुआ वहाँ आ पहुँचा । तब मुनिराज ने हाथ में डण्डा देकर सल से कहा, “पोय् सल" (अर्थात् व्याघ्र को मार भगाओ) । सल ने ऐसा ही किया और व्याघ्र को मार भगाया। तभी से उसका वंश पोयसल (या होयसल) कहलाया। अनुश्रुति है कि मुनि ने उसे राजा बनाने के लिए ही पद्मावती को व्याघ्र के रूप में प्रकट किया था। यहाँ 'वासंतिका अम्मा' का घर आज भी है। कहा जाता है कि देवी की मूर्ति एक हजार वर्ष प्राचीन है। मिट्टी की बनी होने पर भी वह ज्यों की त्यों है । (होयसल वंश का अन्त ही 12वीं सदी में हो गया था)। __ होयसल राजधानी बेलूर में स्थानान्तरण कर दी गयी थी। जब यहाँ विजयनगर के शासकों का राज्य हुआ तो उन्होंने इसे 'अंगडि' नाम दिया। वर्तमान में अंगडि एक छोटा-सा गाँव है जहाँ चावल, कॉफी और इलायची की पैदावार होती है। वासंतिका देवालय से एक फर्लाग जाने पर बीहड़ जंगल में 40 फुट उन्नत छोटी पहाड़ी पर तीर्थंकर नेमिनाथ का मन्दिर है । यह 20 फुट ऊँचा तथा 8 फुट चौड़ा है। इसका निर्माण विनयादित्य ने कराया था। मूर्ति काले पाषाण की है किन्तु उसकी सूक्ष्म कारीगरी चित्ताकर्षक है। यह मूर्ति पद्मासन में आठ फुट ऊँची है। उनके दोनों ओर चँवरधारी हैं। उपर्युक्त मन्दिर से थोड़ी ही दूरी पर 'रत्नत्रय बसदि' है। लगभग चालीस फुट ऊँचे और 25 फुट चौड़े इस मन्दिर का निर्माण भी राजा विनयादित्य ने 1050 ई. में कराया था । गर्भगृह में अरहनाथ, मल्लिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ तीर्थंकरों की भव्य प्रतिमाएँ 'रत्नत्रय' के रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह की बायीं ओर लगभग 4 फुट ऊँची सर्वाण यक्ष की प्रतिमा है । यक्ष के हाथ में 'मादल' फल (कर्नाटक में पाया जाने वाला एक फल) और दूसरे हाथ में पाश है। इसी प्रकार इतनी ही बड़ी कूष्मांडिनी देवी की भी सुन्दर प्रतिमा है। देवी के हाथ में फलगुच्छ है और मस्तक पर छतरी के समान आम का एक वृक्ष चित्रित है जिसमें फल लगे हैं । फलों को खाने के लिए आये हुए तोता, मोर, बन्दर आदि का शिल्पी ने बड़ा ही सुन्दर उत्कीर्णन किया है। मूर्ति के तलभाग में सिंह के ऊपर आसीन होयसल का चित्रांकन है। यहाँ 990 ई. में द्राविड़ संघ के मुनि विमलपण्डित ने सल्लेखना विधि से शरीर त्यागा था। ... उपर्युक्त बसदि से लगभग एक फर्लाग की दूरी पर केशव, ईश्वर और गणपति देवालय हैं। सर्वधर्म-समन्वयभावी बल्लाल नरेश ने 12वीं शती में, एक ही स्थान पर इन तीन मन्दिरों का निर्माण कराया था। . लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर 'हंयूरु' नामक एक गाँव है । इस स्थान पर राजा द्वारा न्याय किया जाता था। यहाँ भी पार्श्वनाथ जिनालय है और मूर्ति के दोनों ओर धरणेन्द्र
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy