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________________ 280 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) है । यहाँ एक सुन्दर ऊँचा स्तम्भ है । उस पर ब्रह्मयक्ष की मूर्ति है । इसी स्तम्भ (कम्बद ) के कारण इस स्थान का यह नाम पड़ा । यहाँ के शान्तिनाथ मन्दिर में शान्तिनाथ की 12 फुट ऊँची भव्य मूर्ति है । महावीर स्वामी की भी एक सुन्दर मूर्ति है जिसका भामण्डल कलात्मक है । कुबेर और द्वारपाल (चित्र क्र. 107) एवं यक्षी की भी आकर्षक प्रतिमाएँ हैं । 1 इस स्थान की पंचकूट बसदि (चित्र क्र. 108 ) का कुछ भाग ध्वस्त हो गया है। इस मन्दिर के पाँच शिखर हैं इसलिए इसे पंचकूट बसदि कहा जाता है। इसके प्रवेशद्वार के बायीं ओर पद्मावती की मूर्ति है । यहाँ आदिनाथ की काले पाषाण की लगभग साढ़े तीन फुट ऊँची (लगभग 900 ई. की ) तथा पार्श्वनाथ की साढ़े पाँच फुट ऊँची मूर्तियाँ हैं । सर्वाणी यक्ष और कूष्मांडिनी देवी की भी प्रतिमाएँ हैं । नेमिनाथ के यक्ष-यक्षिणी भी प्रतिष्ठित हैं । इसके शिखरों में विविधता है जो अन्यत्र नहीं देखी जाती। वर्गाकार, गोल, अष्टकोणीय शिखर एवं अन्य सूक्ष्म अंकन (दिक्पाल आदि) इसे अच्छी कारीगरी का मन्दिर सिद्ध करते हैं । होय्सलनरेश के सेनापति गंगराज (परिचय पहले आ चुका है ) के पुत्र बोप्पण ने 12वीं सदी में इसका निर्माण कराया था । हासन जिले के अन्य जैन स्थल बम्बई-बंगलोर रेलवे लाइन पर यह एक जंक्शन है । यहाँ से भी यात्री हासन होते हुए श्रवणबेलगोल जाते हैं । यहाँ एक सहस्रकूट जिनालय है। यह ध्वस्त अवस्था में है । इसमें नक्काशी का सुन्दर काम है । बसदि में बाहुबली की धातु की प्रतिमा अत्यन्त मनोज्ञ है । होय्सल राजवंश के समय में यहाँ अनेक जैन मन्दिर थे । - हासन अरसीकेरे श्रवणबेलगोल और मूडबिद्री जाने के लिए यह एक प्रमुख सड़क केन्द्र है । यहाँ से रेलमार्ग द्वारा मैसूर और मंगलोर भी जा सकते हैं । इस नगर में बस स्टैण्ड से लगभग आधे किलोमीटर की दूरी पर दो मन्दिर हैं । 'चिक्क बसदि' नामक नवीन मन्दिर में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की भव्य प्राचीन प्रतिमा है (देखें चित्र क्र. 109) उस पर सात फगों की छाया है और सर्प कुण्डली के सात वेष्टन मूर्ति के मस्तक के एकदम पीछे से शुरू होकर एड़ियों तक प्रदर्शित हैं । मूर्ति मकर-तोरण और यक्ष-यक्ष गियों से भी अलंकृत है । तीर्थंकर आदिनाथ की भी छत्र त्रयी. से युक्त एक प्राचीन प्रतिमा है। उसके साथ, वरधारी मस्तक से ऊपर तक प्रदर्शित हैं । यहाँ की दो बसदि भी एक आधुनिक मन्दिर है । उसमें भगवान पार्श्वनाथ की मकरतोरण युक्त भव्य प्रतिमा पर सात फणों की छाया है । सर्पकुण्डली कन्धों से प्रारम्भ होकर घुटनों तक है । केवल तीन वेष्टन हैं और घुटनों के नीचे सर्प की पूँछ प्रदर्शित है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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