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________________ श्रवणबेलगोल | 267 समूह है जिसे 'चन्द्रगुप्त बसदि ' कहा जाता है।'' चन्द्रगुप्त से पारम्परिक रूप से जुड़े हुए ये तीनों विमान मन्दिर या त्रिकूट श्रवणबेलगोल और उसके निकटवर्ती क्षेत्र के सर्वाधिक प्राचीन विद्यमान वास्तु-स्मारक हैं जो लगभग 850 ई. के कहे जा सकते हैं ।" कत्तले बसदि और चन्द्रगुप्त बसदि अतिरिक्त तीसरी कौन-सी बसदि इसमें शामिल है यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया । चन्द्रगुप्त बसदि के सामने लगभग दो फुट लम्बे चरण एक वर्गाकार घेरे में हैं । बसदि के सामने बलिपीठ भी है । पार्श्वनाथ बसदि - यह एक विशाल मन्दिर है जिसकी लम्बाई 59 फुट और चौड़ाई 29 फुट है (देखें चित्र क्र. 99 ) । यहाँ भगवान पार्श्वनाथ की लगभग 15 फुट ऊँची कायोत्सर्ग मूर्ति कमलासन पर प्रतिष्ठित है । गोमटेश्वर की महामूर्ति के बाद यही मूर्ति चन्द्रगिरि पर सबसे विशाल है । इसका निर्माण-काल तो ज्ञात नहीं है किन्तु चामुण्डराय सम्बन्धी वृत्तान्त में उल्लेख है कि उन्होंने महामूर्ति के निर्माण से पहले पार्श्वनाथ के दर्शन किए थे। मूर्ति भव्य और प्राचीन है। पार्श्वनाथ पर सात फणों की छाया है । सर्पकुण्डली पैरों तक उत्कीर्ण है । शायद मूर्ति को आधार प्रदान करने के लिए मूर्ति के पीछे कन्धों के पास एक शिला है । इसी प्रकार कन्धों के पास की दोनों ओर की शिलाएँ सम्भवतः अभिषेक में सुविधा के लिए हैं । मन्दिर द्रविड़ शैली का है और उसकी मुंडेर पर कारीगरी दर्शनीय है । सभामण्डप में बायीं ओर 1129 ई. का एक शिलालेख है जिसमें मल्लिषेण मलधारी की समाधि तथा अनेक आचार्यों की प्रशस्ति वर्णित है । यह लेख चन्द्रगिरि के लम्बे लेखों में से है । इसी लेख में भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त का उल्लेख है । यह शिलालेख 72 श्लोकों में है और यह कह गया है कि वनदेवता भी चन्द्रगुप्त की सेवा किया करते थे । लेख कवि मल्लिनाथ द्वारा साहित्यिक शैली में लिखित है तथा गंगाचारी द्वारा उकेरा गया है । मन्दिर के सामने एक प्रवेश मण्डप भी है । मन्दिर में कुछ दृश्य कमठ के उपसर्ग से सम्बन्धित भी हैं । उपर्युक्त बसदि के पास एक मानस्तम्भ भी है जो 65 फुट 6 इंच ऊँचा है । यह श्रवणबेलगोल में सबसे ऊँचा मानस्तम्भ है । उसमें सबसे ऊपर एक शिखरबन्द मण्डप में तीर्थंकर मूर्ति है । स्तम्भ के चारों ओर यक्ष और यक्षिणियाँ उत्कीर्ण हैं । सबसे नीचे ब्रह्मदेव और कूष्माण्डनी देवी की मूर्तियाँ हैं । यह मानस्तम्भ सत्रहवीं सदी में पुटय्या नामक एक श्रेष्ठी ने बनवाया था ऐसा अनन्त कवि द्वारा रचित कन्नड़ काव्य 'बेलगोलद गोम्मटेश्वर चरित' में उल्लेख है । पार्श्वनाथ बसदि के सामने क्षेत्र की रक्षा के लिए जटिंगराय यक्ष की मूर्ति है। सामने एक बलिपीठ भी है । यह प्राचीन और विशाल मन्दिर इस समय भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है । पार्श्वनाथ मन्दिर के पास एक घेरे में प्रसिद्ध जैन कन्नड़ कवि रन्न ( ' अजितपुराण' के लेखक) और चामुण्डराय के हस्ताक्षर बताए जाते हैं । इसी प्रकार अन्य कुछ शिलाओं पर कन्नड़ और तमिल में लेख हैं जिन्हें सुरक्षित करना आवश्यक है । 'पार्श्वनाथ बसदि' और 'महानवमी मण्डप' के बीच में एक प्राकार है, और उसी में स्थित है श्रवणबेलगोल का सबसे प्राचीन, 600 ईस्वी सन् का वह शिलालेख (चित्र क्र. 100 )
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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