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________________ 32 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) बाहुबली मूर्ति तो जटाओं से युक्त है और श्रवणबेलगोल की मूर्ति से भी प्राचीन है। पार्श्वनाथ की मूर्ति के विभिन्न अंकन देखने के लायक हैं । हुमचा में कमठ के उपसर्ग सहित, तो कहीं-कहीं सहस्रफण वाली ये मूतियाँ मोहक हैं । चतुर्मुखी पाषाण-मूर्तियों का एक अलग ही आकर्षण है । यक्ष-यक्षिणी की भी सुन्दर मूर्तियां हैं। . पंचधातु, अष्टधातु, सोने-चाँदी और रत्नों की मूर्तियाँ भी अनेक स्थानों में हैं। ताडपत्रों पर लिखे गए हजारों ग्रन्थ इस प्रदेश में हैं। प्राचीन धवल, जयधवल और महाधवल ग्रन्थ भी इसी प्रदेश से हमें प्राप्त हुए। जैन और अजैन राजाओं की धार्मिक सहिष्णता के लेख भी यहां प्राप्त होते हैं। जैसे हम्पी के शासक की राजाज्ञा । विजयनगर साम्राज्य के अवशेष यहीं हैं। हनुमान की किष्किधा भी यहीं है। कुन्दकुन्दाचार्य ने जिस पर्वत से विदेह-गमन किया था वह कुन्दाद्रि भी यहीं है। कर्नाटक में कई हजार शिलालेख बताए जाते हैं। केवल श्रवणबेलगोल में ही 600 के लगभग शिलालेख हैं । इनसे जैन राजाओं और जैन आचार्यों की परम्परा स्थापित करने में बड़ी सहायता मिली है। काजू, काफी, नारियल, कालीमिर्च, सुपारी, इलायची आदि के सुन्दर वृक्षों से हरी-भरी मोहक पहाड़ियां और जोग झरने (900 फुट ऊँचे से गिरने वाले) पर्यटक को सहज ही आकर्षित करते हैं। कर्नाटक में लगभग 200 स्थानों पर जैन, तीर्थ मन्दिर या ध्वस्त स्मारक हैं। यद्यपि इस पुस्तक में प्रचुर मात्रा में जैन धार्मिक स्थानों और पुरातात्त्विक स्मारकों का परिचय कराया गया है, किन्तु उसका मुख्य उद्देश्य तीर्थयात्रियों के लिए एक उपयोगी निर्देशिका प्रस्तुत करना है । कर्नाटक की पुरासंपदा के ऐतिहासिक महत्त्व का भी कुछ दिग्दर्शन है। सन्तोष की बात यह है कि कर्नाटक के विश्वविद्यालयों और शोध-संस्थानों में अध्ययन और खोज प्रयत्न जारी हैं । बावजूद इसके कोई भी पुस्तक ऐतिहासिक साक्ष्य की परिपूर्णता का दावा नहीं कर सकती।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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