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________________ 246 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) चामुण्डराय उद्यान-उपर्युक्त वाटिका के सामने और स्थानीय बस-स्टैण्ड से सटे हुए इस उद्यान का निर्माग सहस्राब्दी महामस्तकाभिषेक के समय 1981 ई. में हुआ है। यह भी एक रमणीक स्थल है। कल्याणी सरोवर-विध्यगिरि और चन्द्रगिरि के बीच बने इस विशाल सरोवर(चित्रक्र. 91) का निर्माण कब किसने किया यह ज्ञात नहीं है। सबसे अधिक सम्भावना यही है कि यह एक प्राकृतिक तालाब है जिसे गहरा किया गया है। यह वही सरोवर है जिसे शिलालेखों में 'बेलगोल' 'श्वेत सरोवर' या 'धवल सरोवर' कहा गया है और जिसके कारण ही स्थानीय ग्राम 'श्रवणबेलगोल' कहलाता है। इतना अवश्य है कि इसे सजाने-सँवारने के प्रयत्न किए गए हैं। कल्याणी सरोवर के चारों ओर सीढ़ियाँ हैं और पत्थर का परकोटा है। इस पर चारों दिशाओं में चार शिखर या दक्षिण भारतीय शैली के दो बड़े और दो छोटे गोपुर (शिखरयुक्त प्रवेशद्वार) हैं । गोमटेश की ओर का गोपुर तीन मंज़िल ऊँचा है और सुन्दर है । यह तालाब लगभग 400 फुट चौड़ा और 400 फुट लम्बा तथा 21 फुट गहरा है। इसके उत्तर में एक सभामण्डप है जिसके एक स्तम्भ पर शिलालेख के अनुसार, मैसूर नरेश श्री चिक्कदेव-राजेन्द्र (16721704 ई.) ने इसका जीर्णोद्धार सभामण्डप, शिखर, परकोटा आदि बनाकर कराना प्रारम्भ कराया था किन्तु उनकी मृत्यु हो जाने के कारण उनके पौत्र कृष्णराज ओडेयर (1713-1731 ई.) ने वह निमोण-कार्य पूर्ण कराया। सन् 1981 ई. में, सहस्राब्दी महामस्तकाभिषेक के अवसर पर, इस सरोवर का पुनः जीर्णोद्धार लगभग एक लाख रुपये लगाकर कराया गया है। पिछले चालीस वर्षों से इसका सारा पानी निकालकर कूड़ा-करकट साफ नहीं किया गया था। यह कार्य इस अवसर पर सम्पन्न हुआ। इसमें रंगीन रोशनी युक्त फव्वारे लगाए गए । यहाँ का फव्वारा 70 फुट की ऊँचाई तक पानी फेंककर मनोहारी दृश्य उपस्थित करता है। इसे देखकर कारकल के भट्टारक जी ने इसे 'जलवृक्ष' नाम दिया जो उचित ही है। श्रवणबेलगोल में प्रतिवर्ष भगवान महावीर की जयन्ती एवं पंचकल्याणक पूजा के सिलसिले में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को भारी उत्सव होता है । उस दिन भगवान को नाव में वेदी बनाकर विराजमान करते हैं और कल्याणी सरोवर की तीन परिक्रमाएँ की जाती हैं। सरोवर और उसके गोपुरों पर दीपक जलाकर दीपोत्सव किया जाता है जिसे देखने के लिए बाहर से भी लोग आते हैं। __उपर्युक्त सरोवर के तीनों ओर श्रवणबेलगोल गाँव बसा हुआ है। सरोवर से सीधे चलकर दाहिनी ओर का सरोवर का किनारा पार करके विंध्यगिरि की तलहटी है। वहीं से सीढ़ियाँ गोमटेश्वर की मूर्ति के लिए जाती हैं। विन्ध्यगिरि स्थानीय जनता इस बड़ी पहाड़ी (चित्र कें. 12) को 'दोड्डबेट्ट' भी कहती है। समुद्रतैल से इसकी ऊँचाई 3347 फीट है। इसकी तलहटी में जो नीचे मैदान है उससे यह 470 फीट ऊँची है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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