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________________ श्रवणबेलगोल | 243 सरसेठ हुकमचन्द त्यागी निवास, भट्टारक निवास एवं सरस्वती कक्ष, कुन्दकुन्द तपोवन, मालगोदाम, शिखरद्वार एवं पानी की टंकी, पाँच हजार गैलन की विभागीय टंकी, सुमतिबाई महिलाश्रम, चामुण्डराय भवन, पुरानी धर्मशाला में अतिरिक्त कमरे, श्री महावीर कुन्दकुन्द भवन, धर्मचक्र वाटिका और कीर्तिस्तम्भ, चामुण्डराय उद्यान, आयुर्वेदिक अस्पताल, झाँझरीभवन, राज्य परिवहन बस स्टैण्ड, कल्याणी सरोवर का जीर्णोद्धार एवं प्राचीन मन्दिरों की मरम्मत । अन्य योजनाएँ हैं-साहू शान्तिप्रसाद कला मन्दिर, गुरुकुल भवन, मिश्रीलाल जैन गेस्ट हाउस, अमृतलाल भण्डारी गेस्ट हाउस और कर्नाटक भवन । स्पष्ट है, बिना व्यक्तिगत प्रयास और व्यापक सम्पर्क के ये निर्माण कार्य सम्भव नहीं हो सकते थे। श्रवणबेलगोल के शिलालेख श्रवणबेलगोल को यदि शिलालेखों का खुला संग्रहालय कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। लगभग पाँच हजार की आबादी वाले इस गाँव की दोनों पहाड़ियों, गाँव में और आस-पास के कुछ गाँवों के शिलालेखों की संख्या 573 तक पहुंच गई है। तेईस सौ वर्ष पुराने इतिहास वाले इस स्थान के कितने ही लेख नष्ट हो गए होंगे, इधर-उधर जड़ दिए गए होंगे या अभी प्रकट नहीं हो सके होंगे। ___ कालक्रम और विषय-वस्तु की दृष्टि से इनका विवरण और इनसे जो इतिहास बनता है वह एक पुस्तक का रूप धारण कर सकता है। अतः हम इनकी खोज का इतिहास और कुछ मोटी-मोटी बातों पर ही विचार कर सकेंगे। ___ अंग्रेज़ विद्वान् बी. लेविस राईस मैसूर राज्य के पुरातत्त्व-शोध कार्यालय के निदेशक थे। उन्होंने मैसूर राज्य के हजारों शिलालेखों की खोज का और उन्हें 'एपिग्राफिका कर्नाटिका' (कर्नाटक के शिलालेख) के रूप में प्रकाशित कराया। खोज करते-करते जब वे श्रवणबेलगोल आए तो यहाँ के बेशुमार लेखों को देखकर आश्चर्य में पड़ गए। उनकी रुचि इतनी बढ़ी कि उन्होंने 1881 ई. में 'इन्सक्रिप्शिन्स एट श्रवणबेलगोल' नामक एक पुस्तक में 144 शिलालेख अलग से प्रकाशित किए। श्री राईस के बाद रायबहादुर आर. नरसिंहाचार उपर्युक्त विभाग के निदेशक नियुक्त हुए। उन्होंने श्रवणबेलगोलसम्बन्धी शिलालेखों में इतनी रुचिलो कि यहाँ से ढूँढ़े गए शिलालेखों की संख्या 500 तक पहुँच गई । उन्होंने इन शासनों (शिलालेखों) को ‘एपिग्राफिका कर्नाटिका वॉल्यूम-2, इन्सक्रिप्शन्स एट श्रवणबेलगोल' के रूप में 1923 ई. में प्रकाशित किया। जैन साहित्य के वैज्ञानिक ढंग से अन्वेषी स्व. नाथूराम प्रेमो की दृष्टि इस संग्रह पर गई और उन्होंने जैन शास्त्रों, पुरातत्त्व आदि के चोटी के विद्वान एवं उसके अनवरत सह स्व. डॉ. हीरालाल जी जैन से इन लेखों का संग्रह एक विस्तृत भूमिका के साथ 'माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला' के अन्तर्गत 'जैन शिलालेख संग्रह भाग-1' देवनागरी लिपि में, शिलालेखों की विषय-वस्तु के संक्षिप्त परिचय के साथ सम्पादित कराकर प्रकाशित किया। . यह बात 1928 ई. की है। बाद में जैन शिलालेखों के चार भाग और प्रकाशित हुए हैं।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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