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श्रवणबेलगोल / 221 किया। उपर्युक्त शिलालेख इसी घटना की ओर संकेत कर रहा है कि वन देवता भी प्रभाचन्द्र मुनि ( चन्द्रगुप्त मौर्य) की सेवा किया करते थे ।
(2) श्रवणबेलगोल से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर होसहल्ली ग्राम में 'केरेकोडि जक्कलम्मा' नामक एक मन्दिर है । उस प्राचीन मन्दिर में तीर्थंकर प्रतिमा के दाहिनी ओर कूष्माण्डिनी देवी ( तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षिणी) की अतिशयपूर्ण प्रतिमा है । यह जनश्रुति है कि इसी कूष्माण्डिनी देवी ने चामुण्डराय और उनकी माता को स्वप्न दिया था कि 'पोदनपुर के बाहुबली के दर्शन तो दुर्लभ हैं, तुम यहीं बाहुबली की मूर्ति का निर्माण कराओ ।' उपर्युक्त देवी की मूर्ति गोमटेश बाहुबली की मूर्ति से भी प्राचीन बताई जाती है । ( एक मत यह भी है कि वह स्वप्न पद्मावती देवी ने दिया था । )
( 3 ) यह तो सुप्रसिद्ध तथ्य है कि जब बाहुबली की विशाल मूर्ति का चामुण्डराय ने अभिषेक करना चाहा तो सैकड़ों कलश ढार देने के बाद भी मूर्ति का अभिषेक नहीं हो सका, उसका नीचे का भाग सूखा ही रह गया । सब लोग स्तब्ध थे । चामुण्डराय को आचार्य नेमिचन्द्र ने यह सुझाव दिया कि एक बुढ़िया अभिषेक करना चाहती है, उसे अभिषेक करने दो । अतएव बुढ़िया को अभिषेक मंच पर लाया गया । उस वृद्धा (अज्जी) के हाथ में 'गुळ्ळ' (एक फल ) था जिसके दो भागों को खोखला करके उसने उसमें थोड़ा-सा दूध भर रखा था। सभी के मुख पर आश्चर्य मिश्रित हँसी थी कि यह क्या अभिषेक कर सकेगी। किन्तु आश्चर्य, उसने जो दूध की बूँदें मूर्ति पर डालीं वे देखते-देखते विशाल धार में बदल गईं और पूरी मूर्ति का अभिषेक हो गया तथा पवित्र अभिषेक -दूध पहाड़ी पर बह निकला और उस दुग्ध-धारा से ही 'कल्याणी सरोवर' का पानी दुग्ध- जैसा धवल हो गया । इधर जब वृद्धा को ढूंढा गया तो उसका कहीं भी पता नहीं था । आचार्य नेमिचन्द्र ने चामुण्डराय को बताया कि 'इतनी बड़ी मूर्ति के निर्माण पर तुम्हारे मन में जो गर्व हो गया था, उसे ही खण्डित करने के लिए कूष्माण्डिनी देवी ने वृद्धा का रूप धारण किया था।' इस वृद्धा की मूर्ति आज भी 'गुल्लिका अज्जी' के नाम से बाहुबली प्राकार के निकट है । उसके हाथ में दो भागों वाला पात्र उस (फल) का प्रतीक है। कहा जाता है कि चामुण्डराय ने ही यह मूर्ति बनवाई थी ।
( 4 ) श्रवणबेलगोल में आज भी कूष्माण्डिनी देवी की मान्यता है । यदि किसी समय वर्षा नहीं होती है और सूखे की सम्भावना दिखाई पड़ती है तो सारे गाँव के लोग और मठ के भट्टारकजी कूष्माण्डिनी देवी के मन्दिर में जाकर विशेष पूजन करते हैं जो कि 'हेडिगे जात्रे' कहलाती है । सभी लोग वहीं भोजन करते हैं, देवी की प्रार्थना के बाद जब वापस आते हैं तो भीगते हुए वापस आते हैं ।
(5) बाहुबली की मूर्ति के निर्माण-काल की बात है । चामुण्डराय ने शिल्पी को यह वचन दिया था कि मूर्ति को सूक्ष्म आकार प्रदान करने में वह जितना पाषाण तक्षण करेगा उसके बराबर सोना उसे पारिश्रमिक के रूप में दिया जाएगा । उस सोने की पहली खेप ले जाकर शिल्पी ने जब अपनी माता के सामने रखी तो उसके हाथ सोने से ही चिपक गए । चिन्तित माता दौड़कर आचार्य के पास पहुँची । उन्होंने समाधान दिया कि लोभ की यह करामात है । माता ने लौटकर पुत्र को झिड़का- " एक पुत्र (चामुण्डराय) तो अपनी माता के लिए स्वर्ण से पिण्ड छुड़ा