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________________ कारकल / 153 जाता है । प्रतिमा का मुख उत्तर की ओर है । यहाँ लेटराइट मिट्टी से बने दो प्राकार हैं। बाहरी प्रवेशद्वार के सामने एक मानस्तम्भ है । यह 20 फुट ऊँचा है। उस पर खुले में पाँच फुट ऊँची ब्रह्मयक्ष की आसीन मूर्ति है (देखें चित्र क्र.69) । वीर पाण्ड्य का शिलालेख इस स्तम्भ पर भी है इसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। अन्दर प्रवेश करते समय पूर्व में शीतलनाथ और पश्चिम में पार्श्वनाथ की चार फट ऊँची मतियाँ हैं। आगे ध्वजस्तम्भ है। उससे आगे एक प्रवेशद्वार है। फिर बाहुबली की मूर्ति के दर्शन होते हैं। गोम्मट स्वामी का पादपीठ गोल है और सहस्रदल कमल के अंकन से युक्त है। मूर्ति पाषाण निर्मित अधिष्ठान पर स्थित है और उसके चारों ओर पाषाण से ही निर्मित वेदिका है। कुछ वास्तुविदों का मत है कि मूर्ति की लम्बाई और वजन की दृष्टि से मूर्ति का पादकमल छोटा है जो कि लगभग पांच फुट ही है । मूर्ति की कुल ऊँचाई 42 फुट है । उसके दाएँ एक शिलालेख है और बायीं ओर 'श्रीवीर पाण्ड्य' खुदा है जिसे राजा के हस्ताक्षर माना जाता है। प्रतिमा के पीछे जाँघों तक एक शिलाफलक है जिस पर बाँबी और लताओं का अंकन है। पादतल के समीप की बाँबी से सर्प निकलते दिखाए गए हैं। लताएँ जाँघों से लिपटती हुईं, भुजाओं को समेटती ऊपर कन्धों तक चली गयी हैं। मूर्ति के उदर पर त्रिवलय (तीन रेखाएँ) लघुतर होती चली गई हैं। इसी प्रकार गले में भी रेखाएँ दिखाई गई हैं। बाल धुंघराले हैं। गोम्मट स्वामी कुछ गम्भीर शान्त मुद्रा में हैं, जो एक तपस्यारत श्रमण के सर्वथा उचित है। _ मूर्ति इस समय भारतीय पुरातत्त्व विभाग के नियन्त्रण में एक संरक्षित स्मारक के रूप में है। पूजन होती है। गोम्मटेशगिरि से पूरा कारकल नगर दिखाई देता है। यहाँ से नारियल के वृक्षों का सुन्दर दृश्य मन को मोह लेता है । यहीं से पश्चिमी घाट की पहाड़ियों का प्रत्यक्ष चित्र भी देखने योग्य है। बाहुबली के पीछे की ओर लगभग एक किलोमीटर की दूरी से एक राजमार्ग कुद्रेमुख जाता है। कारकल स्थित अन्य मन्दिरों की यात्रा पार्श्वनाथ मन्दिर–पहाड़ी से नीचे यह मन्दिर है। इसमें पार्श्वप्रभु की लगभग 18 इंच की पद्मासन प्रतिमा है । सफेद संगमरमर की पद्मावती मूर्ति भी है । देवी के चमत्कार के रूप में यह कहा जाता है कि यदि देवी की इच्छा मनोकामना पूर्ण करने की हो तो समीप में ही स्थित रामसमुद्र नामक तालाब में कमल के फूल खिल उठते हैं। मन्दिर पुराना है किन्तु उसका जीर्णोद्धार हो चुका है। चन्द्रनाथ मन्दिर-दिगम्बर जैन मठ में चन्द्रनाथ मन्दिर है। इसमें पंचधातु की चन्द्रप्रभ की खड्गासन मूर्ति है । कूष्माण्डिनी की भी प्रतिमा है। यहीं पाषाण की तीन फुट ऊँची भट्टारकजी की गद्दी है । वर्तमान भट्टारक स्वस्ति श्री ललितकीर्ति जी की आयु सामग्री संकलन के समय (1985 ई. में) 82 वर्ष थी। लगभग 50 वर्ष पूर्व उनका पट्टाभिषेक हुआ था। यहाँ का मठ 'दानशाला मठ' कहलाता है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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