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________________ 144 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) नमः' लिखा है। वहाँ अनन्तनाथ की मूर्ति अन्य दो मूर्तियों की भाँति है। किन्तु एक विशेषता यह है कि प्रभावली में पंचपरमेष्ठी का अंकन है तथा एक पार्श्व में ब्रह्म यक्ष और कूष्मांडिनी हैं। चौथी दिशा में 'भगवान शान्ति तीर्थक राय गरुड़-यक्ष मानसी-यक्षी सहिताय नमः' लिखा है। इस दिशा की शान्तिनाथ मूर्ति उपयुक्त अलंकरण सहित है। जलमन्दिर की पद्मावती प्रतिमा अतिशयपूर्ण बताई जाती है। देवी के सामने नारियल, केले, कुंकुम, अगरबत्ती, कपूर और सुपारी तथा फूल चढ़ाए जाते हैं। यहाँ मनौती करने के लिए सभी सम्प्रदायों के लोग आते हैं। नेमिनाथ बसदि-इस स्थान का सबसे प्रमुख, विशाल (लगभग 70 फुट चौड़ा, 70 फुट लम्बा), नक्काशीदार पाषाण-निर्मित मन्दिर लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन बताया जाता है (चित्र क्र.66) । यह तो बताया ही जा चुका है कि 1424 ई. में विजयनगर के शासक देवराय ने इस मन्दिर का दर्शन कर वरंग गाँव दान में दिया था। अतः इसकी प्राचीनता और लोकप्रियता स्वत: सिद्ध है। मन्दिर के पास ही, किन्तु मन्दिर के अहाते से बाहर, मानस्तम्भ दिखाई देता है जो लगभग 45 फुट ऊँचा है। उसके शीर्ष भाग पर चारों ओर कायोत्सर्ग तीर्थकर प्रतिमाएँ हैं। यह स्तम्भ दूर से ही दिखाई देता है और इसके ठीक पास से ही मठ को जानेवाला रास्ता खेतों में से होकर है। इस बसदि में प्रवेश पूर्व दिशा से है । मन्दिर के चारों ओर पक्की दीवाल है और उसका अहाता काफी बड़ा है । अहाते में एक मण्डप भी है । यात्रा या रथोत्सव आदि के समय उसमें भगवान विराजमान किए जाते हैं। मन्दिर के सामने खुला स्तम्भों युक्त बरामदा या मण्डप है। यहाँ एक ध्वजस्तम्भ भी है जिसपर ध्वज फहराया जाता है। प्रवेश करते ही एक तोरणद्वार है जिसपर पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। सोपान-जंगले से पहले ही दोनों ओर लगभग तीन फुट ऊँचे हाथी बने हुए हैं । मन्दिर के प्रथम प्रवेशद्वार पर दोनों ओर नीचे पूर्णकुम्भ का अंकन है। उसके सिरदल पर पद्मासन में तीर्थंकर मूर्ति है। द्वार की चौखट पर नक्काशी भी आकर्षक है। द्वार के दोनों ओर द्वारपाल भी प्रदर्शित हैं। इसी प्रकार यहाँ कन्नड़ में दो शिलालेख भी हैं । अन्दर के विशाल मण्डप में पीतल की चौबीस तीर्थंकरों की कायोत्सर्ग मुद्रा में आकर्षक मतियाँ मकर-तोरण और कीर्तिमुख सहित हैं। इसी कक्ष में तीर्थंकर नेमिनाथ तथा ब्रह्मदेव और पद्मावती देवी की मूर्तियाँ हैं। बाईं ओर के छोटे गर्भगृह में चन्द्रप्रभ की पीतल की मकर-तोरण और कीर्तिमुख युक्त मूर्ति है। यहीं आदिनाथ और पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ भी हैं। सबसे अन्त के गर्भगृह के मूलनायक नेमिनाथ पर्यंकासन में हैं। उनकी प्रतिमा लगभग पाँच फुट ऊँची है और कीर्तिमुख तथा मकर-तोरण से अलंकृत है । उससे पहले का कोष्ठ खाली है। मन्दिर से बाहर दो शिलालेख और हैं । दाहिनी ओर शिखरयुक्त एक कुलिका में क्षेत्रपाल हैं। मन्दिर के बरामदे की पत्थर की छत ढलुआ है। उसके आधार के लिए पाषाण की ही कड़ियाँ (बीम्स) हैं। स्तम्भों की संख्या लगभग पचास होगी। मन्दिर की तीनों दिशाओं (पृष्ठभाग छोड़कर) में मुखमण्डप हैं । मुख्य प्रवेशद्वार के स्तम्भ पर नीचे दोनों ओर कायोत्सर्ग तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं। स्तम्भ पर घण्टिकाओं का साधारण-सा अंकन है। एक स्तम्भ पर एक ओर कायोत्सर्ग तीर्थंकर, दूसरी ओर पद्मावती तथा तीसरी ओर एक हाथी अंकित किए गए हैं। इस मन्दिर की लगभग ढाई फुट ऊँची, अनन्तनाथ और आदिनाथ की खड्गासन प्रतिमाएँ होयसल शासकों के
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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