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________________ शिमोगा जिले के अन्य जैन स्थल | 131 शिमोगा जिले के अन्य जैन स्थल सागर तालुक जैनधर्म का एक प्रसिद्ध प्रदेश रहा है, ऐसा लगता है। यहाँ अब भी अनेक जैन बसदियाँ अवशिष्ट हैं। fafaqe (Bidnur) यहाँ की पार्श्वनाथ बसदि में चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी की प्रतिमाएँ हैं। छत्रत्रय, यक्ष-यक्षी, मकर-तोरण से युक्त एक चौबीसी लगभग ढाई फीट ऊँची, 14वीं सदी की है। इसी सदी की एक चौबीसी सर्वतोभद्रिका कुछ खण्डित किन्तु मनोहर है। उसमें चारों ओर कायोत्सर्ग एक-एक तीर्थकर के साथ पाँच-पाँच पद्मासन तीर्थंकरों की संयोजना है। एक 'पंचतीथिका' भी पन्द्रहवीं सदी की है जिसमें बीच में एक पद्मासन तीर्थंकर और उनके आसपास दो-दो और तीर्थकर पद्मासन में हैं । ईसा की 14वीं या 15वीं सदी की ही तीन-चार कांस्य-मूर्तियाँ भी यहाँ हैं । ब्रह्मयक्ष भी घोड़े पर सवार प्रदर्शित हैं । एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि यहाँ रामनाथ ने शक संवत् 1410 में एक चैत्यालय का निर्माण कराकर उसमें आदीश्वर स्वामी की मूर्ति प्रतिष्ठित करायी थी। बकोड़ और उसके आसपास की जैन बसदियाँ हलेमन बसदि-इस बसदि में अधिकांश प्रतिमाएँ 10वीं और 11वीं सदी की हैं। यहाँ कम-से-कम चार कांस्य-चौबीसी हैं जो कि नौ इंच से लेकर डेढ़ फुट तक की ऊँचाई की हैं। ये 10वीं से 13वीं सदी तक की हैं । एक चौबीसी पर चाप के साथ करि-मकर प्रदर्शित हैं । एक 'त्रितीथिका' भी यहाँ है । उसमें सम्भवतः शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरहनाथ खड्गासन में हैं (चित्र क्र. 58)। ये छत्रत्रयी, चँवरधारियों एवं मकर-तोरण से युक्त हैं । सुपार्श्वनाथ के अतिरिक्त पद्मावती की मूर्ति भी है जिसका प्रभामण्डल कमल की आकृति का है। यक्षी ज्वालामालिनी की आकृति के आसपास आग की लपटें प्रदर्शित हैं। ओलगेरे बसदि-इसमें भी कांस्य की 15वीं सदी की चौबीसी है जिसके मूलनायक पार्श्वनाथ हैं। उन पर 9 फणों की छाया है। दो पंक्तियों में, वृत्तों में 23 तीर्थंकरों की लघु मूर्तियाँ हैं। कतिनकेरे बसदि-यहाँ भी कांस्य की चौबीसी है जिसके मूलनायक आदिनाथ (?) हैं। यह अंकन 15वीं सदी का है । कायोत्सर्ग मुद्रा में अनन्तनाथ की एक साढ़े चार फीट ऊँची 11वीं सदी की प्रतिमा है। अभिनन्दननाथ की एक आकर्षक किन्तु असामान्य प्रतिमा के साथ यक्ष यक्षेश्वर अपने वाहन हाथी पर सवार है और यक्षी वज्रशृखला हंस पर आसीन है। मूर्ति के आसपास 13 तीर्थंकर और उत्कीर्ण हैं। इस प्रकार का अंकन असाधारण जान पड़ता है। पद्मावती (14वीं सदी) और एक तीर्थंकर प्रतिमा (10वीं सदी) भी यहाँ हैं। कडरूर बसदि-चौदहवीं सदी की, यहाँ की चौबीसी के मूलनायक महावीर स्वामी हैं। वे पद्मासन में हैं और यक्ष-यक्षी सहित हैं। शेष तीर्थंकर भी पद्मासन में हैं।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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