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________________ 126 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) यहाँ यात्रियों को नि:शुल्क भोजन कराया जाता है। यात्री भंडार में दान दे देते हैं। ठहरने की व्यवस्था भी निःशुल्क है। मठ की गौशाला और खेती भी है। मठ के बीचोंबीच नेमिनाथ मन्दिर है। प्रतिमा श्वेत संगमरमर की पद्मासन में है। प्रवेशद्वार पर लगभग 5 फीट ऊँचे काष्ठ-निमित द्वारपाल हैं। इसी प्रकार मन्दिर के प्रवेशद्वार पर काष्ठ के ही पाँच फीट ऊँचे यक्ष-यक्षी भी हैं। यहाँ 10वीं से 16वीं शताब्दी की प्रतिमाएँ पार्श्वनाथ आदि तीर्थंकरों की तथा अष्टधातु की पद्मावती एवं सरस्वती की मूर्तियाँ भी हैं। इस बसदि में एक फुट ऊँची अष्टधातु की चन्द्रप्रभ की खड्गासन प्रतिमा भी है। _ 'सिद्धान्त बसदि' में कुछ दर्शनीय विशेष प्रतिमाएँ भी हैं जिनके दर्शन की अलग से व्यवस्था है। तीर्थयात्री जब इस क्षेत्र के अहाते में प्रवेश करता है तो उसे एक बड़ा आहाता दिखाई पड़ता है। सामने लम्बी-लम्बी अनेक सीढ़ियाँ तथा मानस्तम्भ दिखाई देते हैं। इसी अहाते में हैं 'पार्श्वनाथ बसदि' और 'पद्मावती मन्दिर'। एक ही आँगन में तीर्थंकर और यक्षिणी के अलग-अलग मन्दिर यात्रियों को सबसे अधिक आकृष्ट करते हैं। यहाँ प्रायः मेला लगा रहता है। विशेषकर दक्षिण भारत के जैन-जैनेतरों का यहाँ ताँता लगा रहता है। लोग बसों, कारों में भरकर आते हैं और पूजन-मनौती आदि के बाद अपने स्थानों को लौट जाते हैं । यहाँ उत्तर भारत के महावीरजी और अतिशय क्षेत्र तिजारा जैसा वातावरण उपस्थित होता है। वैसे यहाँ पाँच-छह जैन परिवार ही हैं, उनकी स्थिति अच्छी नहीं है, वे कृषि पर निर्भर करते हैं । किन्तु यात्रियों के कारण क्षेत्र में विशेष चहल-पहल रहती है। पार्श्व बसदि- यह इस स्थान का सम्भवतः सबसे प्राचीन मन्दिर (चित्र क्र. 55) है । यह कहा जा चुका है कि यहाँ ईस्वी सन् 950, 1062 तथा 1256 के शिलालेख हैं । मन्दिर दोमंजिला है। ऊपर की मंज़िल में तीर्थंकर अनन्तनाथ और पार्श्वनाथ की तीन मूर्तियाँ हैं । इसके स्तम्भ और तोरण ग्रेनाइट पाषाण के हैं। गर्भगृह में बीच में पार्श्वनाथ की प्रतिमा लगभग पाँच फीट ऊँची है, उस पर छत्रत्रयी सप्तफणावली और मस्तक से ऊपर तक चँवरधारी हैं। पार्श्वनाथ प्रतिमा के आसपास (दोनों ओर) अन्य तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। गर्भगृह से आगे, कुछ बड़े मण्डप के प्रवेशद्वार के एक ओर कांस्य का नन्दीश्वरद्वीप है जिसकी चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में तीर्थंकर-प्रतिमाएँ प्रर्दाशत हैं। दूसरी ओर कोर्तिमुख सहित स्तम्भयुक्त चाप के नीचे पद्मासन में लगभग चार फीट ऊँची पार्श्वनाथ की प्रतिमा है । चित्रण छत्रत्रयी और सप्तफण सहित है। इन दोनों के पास अर्थात् मण्डप के दाएँ और बाएँ छोर पर कमलासन पर लगभग सात फीट ऊँचो काले पाषाण की पार्श्वनाथ की, सम्भवतः सातवीं सदी की, बहुत मनोहारी प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। उनके दोनों ओर कमठ के उपसर्ग के दृश्य उत्कीर्ण हैं। मूर्ति पर छत्र एक ही है और सातफणों की छाया है। एक ओर कमठ उपसर्ग कर रहा है और दूसरी ओर उसकी पत्नी। सबसे ऊपर कमठ को भगवान पर शिला फेंकते हुए दिखाया गया है तो उसकी पत्नी को छरिका जैसी वस्त लिये हए। उसके नीचे कमठ तीर-कमान का प्रयोग कर रहा है तो उसकी पत्नी के हाथ में तलवार है । उससे भी नीचे इन्होंने सिंह का रूप धारण किया और सिंह के नीचे दोनों ने प्रमत्त हाथी का रूप धारण किया है। भगवान पर कमठ ने घनघोर
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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