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हुमचा | 117
वैगल्लि (vaigalli)
___यह स्थान कुमुट तालुक में है। यहाँ भी 'पार्श्वनाथ बसदि' है। उसकी चौबीसी और एक स्मारक फलक खण्डित हैं । लेख मिट-सा गया है। कुमुट (Kumut)
यहाँ का 'पार्श्वनाथ देवालय' बारहवीं शताब्दी या इससे भी प्राचीन है। इसमें पार्श्वनाथ की मूर्ति की स्थापना मूलसंघ के सूरस्थगण चित्रकूटगच्छ के श्री मुकुन्ददेव ने की थी। यहाँ समाधिमरण करने वालों में प्रमुख हैं-मुनि नागचन्द्र, श्रावक साविवेद्द तथा श्राविका कंचलदेवी।
हुमचा
उत्तर भारत में राजस्थान के दो अतिशय क्षेत्र प्रसिद्ध हैं। एक है दिल्ली-कोटा-बम्बई रेलवे लाइन पर श्री महावीरजी और दूसरा है अलवर जिले का तिजारा। दोनों ही अत्यधिक संख्या में (विशेषकर उत्तर भारत के) यात्रियों को आकर्षित करते हैं। यदि कोई यह पूछे कि कर्नाटक में भी क्या कोई ऐसा अतिशय क्षेत्र है ? तो उसका उत्तर होगा-हाँ, हुमचा है। यहाँ की पद्मावती देवी के अतिशय के कारण यहाँ बड़ी चहल-पहल रहती है और प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में यात्री आते हैं।
इस स्थान के नाम का वास्तविक उच्चारण हुंचा (Humcha) है । अवस्थिति एवं मार्ग
सड़क-मार्ग द्वारा हुमचा तीन स्थानों से सीधे पहुँचा जा सकता है। सागर से आनन्दपुरम्, रिपनपेट होते हुए हुमचा कुल 64 कि. मी. (रास्ते में छोटी पहाड़ियाँ, घाटियाँ और कुछ भाग वन), दक्षिण में तीर्थहल्ली से यह 29 कि. मी. और शिमोगा से लगभग 60 कि. मी. है।
यहाँ दक्षिण रेलवे के बिरूर-तालगप्पा मार्ग पर स्थित आनन्दपुरम् और अरसालु(Arasalu) नामक दो रेलवे स्टेशनों से पहुँचा जा सकता है। आनन्दपुरम् से बस द्वारा हुमचा के लिए लगभग 40 किलोमीटर की यात्रा करनी होती है। अरसालु से भी बस द्वारा लगभग 23 कि. मी. यात्रा कर वहाँ पहुँचा जा सकता है।
सागर से मूडबिद्री आदि की मिनी बसें और बड़ी बसें दोनों ही हुमचा आती हैं। मिनी बसें मठ के चौक के अन्दर तक आ जाती हैं।
इस अतिशय क्षेत्र का इतिहास लगभग 1300 वर्ष पुराना है। प्राचीन शिलालेखों में इसके नाम के अनेक रूपान्तर मिलते हैं। कनकपुर शिलालेख में यह पोम्बुर्चपुर, पट्टि पोम्बुच्चा, पोम्बुर्चा, पोम्बुच्चा, होम्बुचा नामों से अभिहित है। इस क्षेत्र को लोग होम्बुज, होम्बुजा, पोम्बुच्च, होम्बुच्च, हुमचा एवं हुंचा भी कहते हैं। राज्य सरकार द्वारा स्वीकृत नाम हुंचा है।