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106 | भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक)
ग्यारहवीं शती की हैं। एक तीर्थंकर प्रतिमा के ऊपर छत्रत्रयी और लताएँ हैं जिनमें गोल-गोल घेरों में संगीत-मंडली है । यहाँ अम्बिका और पद्मावती यक्षिणियों की भी ग्यारहवीं सदी की मूर्तियाँ हैं । एक नागफलक भी है जिस पर पार्श्वनाथ की मूर्ति उत्कीर्ण है। कोन्नूरु (कोयनूरु) (Konnuru)
गोकाक तालुक में एक परमेश्वर मन्दिर है जो पहले जैन मन्दिर था। इस मन्दिर के सिरदल पर एक उभरे आले में आसीन तीर्थंकर की मूर्ति उत्कीर्ण है । उसके साथ छत्रत्रयी और दोनों ओर चँवरधारी भी हैं। इसका समय 10वीं शताब्दी है। एक खण्डित धरणेन्द्र (सम्भवतः) की भी मूर्ति यहाँ है।
प्रथम राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष ने अपने सामन्त बंकेय द्वारा इस स्थान पर निर्मित जिनालय के लिए 'तलेयूरु' नामक गाँव और अन्य भूमि दान में दी थी। इसका समय सन् 860 ई. है। कलकेरी (Kalkeri)
हनगल तालुक के इस स्थान पर बारहवीं शताब्दी में 'अनन्तनाथ तीर्थंकर बसदि' का निर्माण हुआ था। कमलसेन मुनि की प्रेरणा से महाजनों ने भी इस मन्दिर के लिए दान दिया था।
यहाँ के जिनालय में 19वीं सदी की यक्षी पद्मावती की एक प्रतिमा है। उसके ऊपर सात फण यक्त पार्श्वनाथ हैं। फण के पास भी तीर्थंकर प्रतिमा है। सोलहवीं सदी की, ब्रह्मयक्ष के भी एक प्रतिमा है। इसी प्रकार आदिनाथ (10वीं सदी) की खंडित प्रतिमा, ग्यारहवीं सदी की एक तीर्थंकर प्रतिमा और सती-स्मारक तथा एक नागफलक (10वीं सदी) भी यहाँ से प्राप्त हुए हैं। हनगल (Hangal)
यहाँ का वीरभद्र मन्दिर पहले एक जैन मन्दिर था ऐसा जान पड़ता है। गर्भगृह के अलंकृत प्रवेशद्वार के सिरदल पर कोई मूर्ति थी जिसे छैनी से निकाल दिया गया है। एलावत्ति (Elavatti)
___ हनगल तालुक में एक 'एला जिनालय' है। इसकी गुम्बद नष्ट हो गई है। यह मन्दिर दसवीं शताब्दी का जान पड़ता है। यहाँ इसी सदी की आदिनाथ और पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ हैं। कांस्य की ग्यारहवीं सदी की अम्बिका यक्षी की प्रतिमा पर तीर्थंकर नेमिनाथ अंकित हैं। 3777&ata (Artala)
शिग्गाँव तालुक के इस स्थान पर पाश्व-बसदि है। इसका निर्माण चालुक्य शासकों के समय में शक संवत् 1045 में हुआ था। प्रेरक थे मुनि कनकचन्द्र । उस समय बनवासि और हानुगुल्लु प्रदेश में कदम्बकुल का महामण्डलेश्वर तैलपदेव राज्य करता था। इस बसदि में ग्यारहवीं