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धारवाड़ / 97
Research Society) भी कार्यरत है। यह सब विश्वविद्यालय केम्पस में हैं।
कन्नड़ संस्थान को हाल ही में एक खेत से पीतल की ढाई फुट ऊँची कायोत्सर्ग तीर्थंकर प्रतिमा प्राप्त हुई है।
___ संग्रहालय में अधिकांश प्रतिमाएँ 11वीं-12वीं शताब्दी की हैं। उनमें से कुछ खण्डित भी है (देखें चित्र क्रमांक 32)।
संग्रहीत जैन कला-वस्तुओं में मूर्तियों के अतिरिक्त चरण, सल्लेखना दृश्य, निषधि (स्मारक), यक्ष-यक्षी, नन्दीश्वर और बाहुबली की प्रतिमा मुख्य हैं । ब्रह्मदेव यक्ष की मूर्ति (चित्र क्र. 33) विशेष रूप से उल्लेखनीय है । ये पाषाण, कांस्य और पीतल से निर्मित हैं । यहाँ छह फुट ऊँची पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति है तो एक फुट ऊँची तीर्थकर मूर्ति भी है । नन्दीश्वर की ऊँचाई केवल नौ इंच है। प्रतिमाएँ आदि गलियारे में (हॉल के) तथा प्रदर्शन-बक्सों (डिस्पलेकेस) में भी भली प्रकार सजाकर रखी गई हैं । मूर्तियों का संग्रह अमीनबावि, लक्कुंडि, डम्बल के खेतों आदि से किया गया है। उनकी खोज निरन्तर जारी रहती है और संग्रह में वृद्धि होती रहती है। कुछ कलाकृतियों का यहाँ संक्षिप्त परिचय दिया जाता है
तेरहवीं शताब्दी की एक निषधि में ऊपर तीर्थंकर मूर्ति उत्कीर्ण है तो नीचे उपाध्याय की मूर्ति, जिसके हाथ में उसका चिह्न पुस्तक है । कीर्तिमुख और मकर-तोरण से युक्त बहुतसी कांस्य प्रतिमाएँ इस संग्रहालय में हैं जिनकी कला दर्शक को आकर्षित करती है। ब्रह्मदेव की भी चार फुट ऊँची एक मूर्ति वहाँ हैं। यहाँ भूत, भविष्य और वर्तमान की बहुत सुन्दर तीन चौबीसियाँ अर्थात् त्रिकाल-चतुर्विंशतिका भी है । मूलनायक कायोत्सर्ग मुद्रा में तीर्थंकर पार्श्वनाथ हैं। एक ओर इसी मुद्रा में सुपार्श्वनाथ भी हैं। तीन चापों (arches) में तीर्थंकरों की लघुआकृतियाँ हैं जिनकी संख्या 72 होगी। नीचे यक्ष-यक्षी हैं। अशोक-वृक्ष,स्तम्भयुक्त चाप (Pillared arch) और कीर्तिमुख की संयोजना के कारण यह दर्शक का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट करती है। कामनकट्टी का जैन मन्दिर तथा अमीनबावि की नेमिनाथ बसदि
___ स्थानीय बस-स्टैण्ड से लगभग दो-तीन किलोमीटर की दूरी पर कामनकट्टी में भी एक जैन मन्दिर है। इसी बस-स्टैण्ड से अमीनबावि की नेमिनाथ बसदि जो कि तीन चार किलोमीटर की दूरी पर है, देखी जा सकती है। वहाँ सीधी बसें भी जाती हैं।
धारवाड़ में स्टेशन-रोड (नया नाम सन्मति-रोड) पर जी. पी. ओ. के सामने सन्मति जैन बोडिंग है। यह बस-स्टैण्ड से लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर है। यहाँ भी ठहरने की सीमित व्यवस्था सम्भव है।
हुबली के प्रसंग में यह परामर्श दिया गया था कि हुबली को केन्द्र बनाना चाहिए और धारवाड़ देखकर वापस हुबली लौट जाना चाहिए। हुबली के बाद अगला दर्शनीय स्थल लक्ष्मेश्वर है।