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________________ 96 / भारत के दिगम्बर जैनतीर्थ (कर्नाटक) शान्तिनाथ मन्दिर धारवाड़ में एक ध्वस्त किला भी है। उल्लेख है कि विजयनगर शासक के अधिकारी दारराव ने इसे बनवाया था और इसी दारराव के नाम पर यह नगर धारवाड कहलाया। यहीं यह जैन मन्दिर भी है। उपर्युक्त शान्तिनाथ मन्दिर द्रविड़ शैली का है। इस पर शिखर नहीं है । इसमें कमलासन पर पार्श्वनाथ की काले पाषाण की साढ़े आठ फुट ऊँची प्रतिमा है जिसके दोनों हाथ खण्डित हैं । इसमें संभवतः सर्वाह्न यक्ष और द्वारपालिका की खण्डित मूर्तियाँ भी हैं । इस मन्दिर की छत पर भगवान नेमिनाथ अपने पूर्ण परिकर के साथ प्रदर्शित हैं। छत पर इस प्रकार का अंकन असाधारण है। भगवान नेमिनाथ के चारों ओर कोनों में आकाशचारी विद्याधर (?) उत्कीर्ण हैं। उनके आस-पास संभवत: आठ दिक्पाल (?) या चँवरधारी हैं। इसी प्रकार यगल रूप में अश्वारोही, गजारोही, मकर आदि चित्रित हैं । तीर्थंकरों की खड्गासन में धातु-प्रतिमाएँ भी हैं। उनके साथ यक्ष-यक्षी भी प्रदर्शित हैं। मकर-तोरण, कीर्तिमुख और कलश की भी संयोजना यहाँ एक मानस्तम्भ भी है जिसका आधार भाग ताँबे का है। उस पर लेख अंकित है। यहाँ आसीन पद्मावती की प्रभावली युक्त पाषाण प्रतिमा भी है। इस प्रकार यह मन्दिर असाधारण और इस कारण दर्शनीय है। कन्नड़ शोध संस्थान एवं संग्रहालय (धारवाड़ विश्वविद्यालय) जैसाकि ऊपर कहा जा चुका है, यहाँ के विश्वविद्यालय के कन्नड़ शोध संस्थान (KRI) का एक बड़ा संग्रहालय है । उसे हर जैन पर्यटक को देखना चाहिए। उसमें प्राचीन एवं भव्य जैन मूर्तियाँ आदि काफ़ी संख्या में संग्रहीत हैं। ___ उपर्युक्त संस्थान की स्थापना 1939 में बम्बई सरकार ने की थी। तबसे अब तक यह संस्थान कन्नड़ साहित्य और कर्नाटक के इतिहास के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य कर रहा है । सन्1958 में इस संस्थान में 'Guide to the Kannada Research Institute, Museum' प्रकाशित की थी। उसमें लक्कुण्डि और हदुवल्ली से प्राप्त मूर्तियों आदि का विस्तृत परिचय दिया गया है। इसी संस्थान का एक अन्य प्रकाशन है 'Jain Iniages in KRI' । इस संस्थान ने कर्नाटक में प्राप्त शिलालेखों के कुछ ज़िलेवार खण्ड प्रकाशित किए हैं और शेष खण्ड भी प्रकाशनाधीन हैं। उनसे जैन-धर्म सम्बन्धी नयी जानकारी कर्नाटक के सम्बन्ध में प्राप्त होने की सम्भावना है। इस पुस्तक की सामग्री-संकलन के समय प्रोफ़ेसर एम. एम. कुलबर्गी संस्थान के अध्यक्ष और संग्रहालय के निदेशक थे। उन्हें जैन पुरातत्त्व की अच्छी जानकारी है । लेखक को उन्होंने अलमारियों में सुरक्षित तीर्थंकरों आदि की सुन्दर कांस्य प्रतिमाएँ दिखायीं जो कि लक्कुंडि और डम्बल आदि अनेक स्थानों से प्राप्त हुई हैं और जिन्हें सजाकर रखने का उनका प्रयत्न है। उन्होंने यह भी सूचना दी कि कर्नाटक में ताडपत्र पर लिखे लगभग दस हज़ार जैन ग्रन्थ हैं जिनका सूचीकरण एवं संरक्षण आवश्यक है। विश्वविद्यालय में 'कन्नड ऐतिहासिक अनुसंधान सोसाइटी' (Knnada Historical
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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