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लक्कुण्डि / 59
प्रवेश के लिए तीन सीढ़ियाँ और चन्द्रशिला है। प्रवेशद्वार पंचशाखायुवत है जिस पर बेलबूटे की सूक्ष्म नक्काशी की गई है। इसके सिरदल पर भी नक्काशी दिखाई देती है जो कुछकुछ मिट गई जान पड़ती है। दोनों ओर दो तीर्थंकर पद्मासन में दिखाए गये हैं। प्रवेशद्वार के दोनों ओर दो द्वारपाल भी उत्कीर्ण हैं।
मन्दिर के गर्भगृह में पद्मासन में महावीर स्वामी की प्रतिमा है जिसकी पहिचान तीन सिंहों वाले उसके आसन से होती है। प्रतिमा धूमिल पड़ गई है और उसे विकृत कर दिया गया है। मूर्ति का भामण्डल साधारण है और चापाकार है। मूर्ति पर तीन छत्र हैं जो कि अलग-अलग हैं और उलटी झाँझ की तरह दिखाई देते हैं। प्रतिमा के सिर से ऊपर तक चँवरधारी चित्रित हैं और अशोक वृक्ष-सा अंकन भी है। छत में आकाशचारी विद्याधरों को दर्शाया गया है। ये गर्भगह के सामने की छत में भी प्रदर्शित हैं।
यह जैन गुफा-मन्दिर सबसे ऊँचा है और छोटा होते हुए भी मूर्ति-शिल्पकला का एक अद्भुत संग्रहालय है। नौ इंच से लेकर आठ-नौ फीट ऊँची तक की अनगिनत मूर्तियाँ इस पूरे गुफा-मन्दिर में सुशोभित हो रही हैं। येलम्मा का मन्दिर
__पहाड़ से नीचे उतरकर सरोवर के किनारे पहुँचने पर देवी येलम्मा का द्रविड़ शैली का एक छोटा-सा सुन्दर मन्दिर है। उसके सिरदल पर गजलक्ष्मी, गर्भगृह के बाहर दो छोटे-छोटे पत्थरों पर चरण और नागफलक देखे जा सकते हैं।
भूतनाथ मन्दिर-समूह
___ सरोवर के दूसरी ओर भूतनाथ मन्दिर-समूह है। यहाँ उपाध्याय या आचार्य परमेष्ठी को उपदेश-मुद्रा में देखा जा सकता है। वे तीन सिंहोंवाले आसन पर विराजमान हैं। उनके दोनों ओर सिर से ऊपर तक चँवरधारी अंकित हैं। संभवतः अशोक वृक्ष का भी अंकन है। स्तम्भोंयुक्त एक चाप के सिरों पर मकर उत्कीर्ण हैं । ये उपदेशक के पीछे अलंकरण के रूप में प्रयुक्त हैं।
लक्कुण्डि बादामी, पट्टदकल, ऐहोल की कला-कृतियाँ देखने के बाद, निश्चय ही पर्यटक विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी के कलावशेषों को शीघ्र से शीघ्र देखना चाहेगा किन्तु मार्ग में एक और महत्त्वपूर्ण स्थान है लक्कुण्डि। यह राजमार्ग पर है और यहाँ पुरातत्त्व विभाग ने अधिकांशतः जैन-मूर्तियों से सम्पन्न अपना संग्रहालय खोल रखा है।