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________________ बादामी | 57 और नर्तक दल, मौक्तिक मालाएँ और द्वारपाल आदि का उत्कीर्णन ध्यान देने योग्य है । इस गुफा मन्दिर से दोनों पर्वतों के बीच के सरोवर के सुन्दर दृश्य का आनन्द लिया जा सकता है । सामने ही दूसरे पर्वत पर चार-पाँच मन्दिर दिखाई पड़ते हैं । गुफा मन्दिर 3 से पहले क़िले का दक्षिणी भाग है और सीढ़ियाँ दिखाई देती हैं । इसके प्रवेशद्वार पर नालदण्ड सहित कमल शोभते हैं । क़िले में पुरानी तोप रखी है । यहीं सीढ़ियों के पास से बादामी की आधुनिक आबादी का अच्छा दृश्य दिखाई देता है । इस गुफा के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि चालुक्यनरेश मंगलीश ने इसे ईस्वी सन् 578 में निर्मित कराया था । उसी समय उसने अपनी राजधानी ऐहोल से हटाकर बादामी में स्थापित की थी । यह गुफा मन्दिर सबसे बड़ा है। इसके मुखमण्डप या सामने के बरामदे की चौड़ाई लगभग 70 फीट है और गुफा की गहराई लगभग 65 फीट । ऊँचाई में यह लगभग 15 फीट है । इसके ऊपर लगभग 50-60 फीट ऊँची शिला है जिससे पानी रिसता रहता है। प्रवेशमण्डप के साथ उत्कीर्ण संगीत-वादक मण्डली, विशाल स्तम्भों पर सूक्ष्म नक्काशी, पौराणिक दृश्य, शेषनाग पर विष्णु जिनके ऊपर फणावली है, मिथुन, कामक्रीडारत युगल, हनुमान आदि अन्य उत्कीर्ण कृतियाँ देखने लायक हैं। कहा जाता है कि इस गुफा एवं अन्य अजैन गुफाओं की दीवालों पर उत्कीर्णन बाद में किया गया है। यह गुफा बादामी नगर से भी दिखाई पड़ती है । वास्तुविदों का मत है कि ये गुफा - मन्दिर इस क्रम से निर्मित हुए - पहले क्रमांक 3, फिर 2 और 1 तथा सबसे बाद में क्रमांक 4 | जैन गुफा मन्दिर : मूर्ति - शिल्प की अनोखी शोभा इन गुफा-मन्दिरों में सबसे अन्तिम अर्थात् गुफा मन्दिर क्रमांक 4 जैन मन्दिर (चित्र क्र. 19 ) है । इतिहासकारों का मत है कि इसका निर्माण पूर्वोक्त अजैन गुफाओं के लगभग सौ वर्षों बाद हुआ होगा । यह गुफा मन्दिर 31 फीट चौड़ा और 16 फीट गहरा है । इसके ऊपर लगभग 40 फीट शिला है जो कि टुकड़े-टुकड़े दिखती है । इसके ऊपर भी पानी रिसता रहता है । इसके सामने खुला आँगन बहुत कम है और सीढ़ियों का भी अन्त हो जाता है । इसके एकदम नीचे सरोवर का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है । इस गुफा मन्दिर को यहाँ के लोग 'मेण बसदि' भी कहते हैं । अन्य गुफाओं से ऊपर स्थित होने के कारण इसे 'मेगण बसदि' (अर्थात् ऊपर का मन्दिर ) कहा जाता था जो कि कालान्तर में 'मेण बसदि हो गया । यहाँ 7-8वीं सदी के एक-दो शिलालेख भी हैं। 1 यह मन्दिर 'आकार में लघुतम किन्तु अलंकरण में सर्वोत्कृष्ट' है । इस गुफा मन्दिर के प्रवेश-मण्डप या बरामदे में चार स्थूलकाय स्तम्भ और दो भित्ति-स्तम्भ हैं । इन पर मोतियों की माला का सुन्दर एवं सूक्ष्म अंकन दर्शक को आकर्षित करता है । ये स्तम्भ वर्गाकार हैं और इनकी सजावट के लिए कमल, मिथुन, मकर, वल्लरियों आदि का प्रयोग किया गया है इनके शिखर कलश और कुम्भ से सुशोभित हैं । स्तम्भों की शिला को छैनी से कुरेद-कुरेद कर कलापूर्ण बनाया गया है और उनमें तीर्थंकरों की लघुमूर्तियाँ उकेरी गई हैं । इन लघुमूर्तियों के केन्द्र भाग में महावीर की कुछ बड़ी मूर्ति है । ऐसा लगता है कि इस गुफा मन्दिर 1
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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