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________________ (6) सेक्रेड श्रवणबेलगोल-डॉ. विलास ए. संगवे (भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित) (7) अन्तर्द्वन्द्वों के पार (ऐतिहासिक उपन्यास)-लक्ष्मीचन्द्र जैन (8) गोमटेश गाथा (उपन्यास)-नीरज जैन (9) सत्ता के आर-पार (नाटक)-विष्णु प्रभाकर (10) महाप्राण बाहुबली (नाट्य-काव्य)-कुन्था जैन (11) महामस्तकाभिषेक स्मारिका-मुज़रई इंस्टीट्यूट श्रवणबेलगोल से प्रकाशित (हिन्दी, अंग्रेजी, कन्नड में) (12) बाहुबली-चित्रकथा (टाइम्स ऑफ इण्डिया प्रकाशन) (13) जय गोमटेश्वर-अक्षय कुमार जैन (14) तपोमूर्ति बाहुबली-कमला जैन (15) स्मरण संचिका (कन्नड)-ए० आर० नागराज इसके अतिरिक्त जो अन्य अनेक प्रकार का भव्य साहित्य अन्य अनेक संस्थाओं या व्यक्तियों द्वारा प्रकाशित हुआ है वह भी कम मूल्यवान नहीं। जिस समय तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा कर्नाटक और केरल से सम्बन्धित इस पाँचवें भाग की योजना बनी उस समय उक्त विपुल साहित्य में से बहुभाग प्रकाशित नहीं हुआ था । पाँचवें भाग के आयोजन और सम्पादन का दायित्व तीर्थक्षेत्र कमेटी ने ज्ञानपीठ को दिया। कमेटी की ओर से डॉ० राजमल जैन को विशेष अनुबंधित व्यवस्था के अन्तर्गत सामग्री-संकलन और लेखन का दायित्व दिया गया। सम्पादन का दायित्व निर्वाह करते समय मुझे लगा कि पाण्डुलिपि को अनावश्यक विस्तार से बचाना आवश्यक है। सम्पादन की प्रक्रिया में कठिनाइयाँ भी अनेक आयीं। सौभाग्य से वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली के उपाध्यक्ष डॉ० गोकुल प्रसाद जैन का सहयोग प्राप्त हुआ। वह स्वयं अनुभवी हैं, विद्वान हैं और प्रकाशन-कार्यों को गति देने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। पृष्ठभूमि में कहीं-न-कहीं जुड़े हैं-पं० बलभद्र जी, धर्मराज जी के रूप मे वर्तमान भट्टारक स्वामी मूडबिद्री और स्वर्गीय श्री गुरुराज भट्ट । योजना की नींव डाली समाज के यशस्वी नेता, अनभिषिक्त सम्राट, दानवीर, श्रावकशिरोमणि स्व० श्री साहू शांतिप्रसाद जी ने । उसके बाद इसका दायित्व लिया श्रद्धेय साहू श्रेयांस प्रसाद जैन ने जिनकी निष्ठा, भावना और लगन का कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। ___ भारत के दिगम्बर जैनतीर्थ ग्रन्थमाला के अन्तर्गत पिछले चार भागों के नियोजन व सम्पादन के लिए हमारे सामने निश्चित स्थिति थी कि तीर्थक्षेत्रों में कल्याणक क्षेत्र कौन से हैं, सिद्ध क्षेत्र कौन से हैं और अतिशय क्षेत्र कौन से हैं। दक्षिण भारत के तीर्थस्थानों के सम्बन्ध में इस प्रकार का विभाजन सम्भव नहीं है। यहाँ की विशेषताओं का दृष्टिकोण और परिदृश्य दूसरे प्रकार का है। जिन भगवान बाहुबली की चरण-वन्दना से यह आलेख प्रारम्भ हुआ है, वह तीर्थंकर नहीं हैं, दक्षिण भारत में उनका जन्म भी नहीं हुआ। किन्तु यह कैसी शुभ स्थिति है कि वह भगवान आदिनाथ से पहले मोक्षगामी हुए। जिन परम पूज्य आचार्य भद्रबाहु ने ७०० से अधिक दिगम्बर मुनियों के साथ दक्षिण भारत की धरती को अपनी चरणरज से पवित्र किया, उनका अनुगामी दिगम्बर शिष्य था एक ऐसा सम्राट् जिसके शौर्य और युद्ध-चातुर्य का
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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