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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ૬૭ एक मार्ग बाजनी शिलाकी ओर गया है। रास्तेमें एक छत्रीमें क्षेत्रपाल विराजमान है। इससे आगे बढ़नेपर एक छोटा-सा कुण्ड बना हुआ है, जिसका आकार नारियल-जैसा है। इसलिए इसे नारियल-कुण्ड कहा जाता है। यह एक गज चौड़ा और लगभग १७ गज गहरा है। इसके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती है कि एक मुनिराजने प्याससे व्याकुल एक बालकको दुखी देखकर एक यात्रीसे नारियल फोड़नेके लिए कहा। नारियलके फूटते ही यहां एक कुण्ड उमड़ पड़ा। इसमें सभी ऋतुओंमें जल भरा रहता है। लोगोंका विश्वास है कि यदि कोई निःसन्तान व्यक्ति उस कुण्डमें बादाम डाले और बादाम जलके ऊपर तैरने लगे तो उसे अवश्य सन्तान प्राप्त होगी। इसके पास ही एक पहाड़ी शिला टिकी हुई है, जिसे बजानेसे मधुर ध्वनि निकलती है। उसे 'बाजनी शिला' कहते हैं। यह १५ फुट लम्बी और १० फुट चौड़ी है। इसके सिरेपर मनुष्यके सिरेके आकारका एक गहरा गड्ढा बना हुआ है। इनके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती प्रचलित है कि यहाँ एक मुनिराज तपस्या कर रहे थे। अकस्मात् इनके सिरपर यह शिला गिर पड़ी। पत्थरमें सिर धंस गया किन्तु मुनिराजके कोई चोट नहीं आयी। शिलामें मनुष्यके सिर समाने लायक गड्ढा है। नारियल-कुण्डके बगलमें मुनिराजके चरण बने हुए हैं। .... ७०. पार्श्वनाथ मन्दिर-मन्दिरमें एक छत्रीके नीचे ३ फुट ऊँची एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा विराजमान है, जिसमें चारों दिशाओंमें आदिनाथ, वासुपूज्य, अनन्तनाथ और कुन्थुनाथकी प्रतिमाएं बनी हुई हैं । वणं नील है। ७१. पाश्वनाथ मन्दिर-यह प्रतिमा खड्गासन, मुंगिया वर्णकी और ६ फुट ऊँची है। इसकी प्रतिष्ठा चौधरी खड्गसेन बरैया करहियाने करायी। इस मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणापथ बने हुए हैं। . ७२. पार्श्वनाथ मन्दिर–इसमें पार्श्वनाथकी खड्गासन, कृष्णवर्ण ४० इंचकी प्रतिमा विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा मगरौनीकी बरैया पंचायतने संवत् १८८४ में करायी थी। इसी मन्दिरमें एक और वेदी बनी हुई है, जिसके ऊपर भगवान् चन्द्रप्रभकी खड्गासन और ५ फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है। इसकी भी प्रतिष्ठा संवत् १८८४ में हुई। इस मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हुए हैं। ७३. नेमिनाथ मन्दिर-भगवान्की यह प्रतिमा खड्गासन, मगिया वणं और साढ़े चार फुटकी है। सिरके ऊपर तीन छत्र और सिरके पीछे भामण्डल बना हुआ है। अधोभागमें एक ओर यक्ष है तथा दूसरी ओर वृषभकी पीठपर चतुर्भुजी यक्षी आरूढ़ है। मन्दिरमें गर्भगृह और प्रदक्षिणा-पथ बने हुए हैं। __७४. महावीर मन्दिर-इस मन्दिरमें कुल सात वेदियाँ ऊपरके भागमें बनी हुई हैं। मुख्य वेदीपर भगवान महावीरको पद्मासन, श्वेतवर्ण, ३ फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है। इसकी संवत् १८३८ में प्रतिष्ठा हुई। इसके बायीं ओरकी वेदीपर कत्थई वर्ण, खड्गासन, २३ फुट ऊंची महावीर प्रतिमा विराजमान है तथा दायीं ओरकी वेदीपर मनिसव्रतनाथकी पद्मासन. श्वेतवर्ण. १ फुट अवगाहनावाली और संवत् १८२६ में प्रतिष्ठित प्रतिमा है। बरामदेमें पार्श्वनाथकी एक प्रतिमा विराजमान है जो कृष्णवर्ण, पद्मासन, १५ इंच ऊँची है और उसकी प्रतिष्ठा संबत् १९३० में हुई। एक दूसरे बरामदेमें गर्भगृहमें तीन वेदियां बनी हुई हैं। मध्य वेदीपर चन्द्रप्रभ भगवान्की श्वेतवर्ण, पद्मासन, डेढ़ फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है, जिसकी प्रतिष्ठा वीर संवत् २४७० में हुई। बायीं ओरको वेदियोंपर कृष्णवर्ण, पद्मासन, १ फुट अवगाहनावाली पार्श्वनाथ प्रतिमाएं हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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