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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थोंका संक्षिप्त परिचय और उनका यात्रा-मार्ग सिहोनिया आगरा-वालियरके मध्य स्थित मुरैनासे यह स्थान ३० कि. मी. है। मुरैनासे सिहौनिया गाँव तक पक्की सड़क है और कई बसें जाती हैं। बस गांवके बाहर थाने तक जाती है। वहाँसे श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सिहोनिया कच्चे मार्गसे लगभग १ कि. मी. है। क्षेत्रपर ठहरनेके लिए धर्मशाला है, किन्तु अभी वहां सुरक्षाकी कोई व्यवस्था नहीं है। क्षेत्रपर शान्तिनाथ भगवान्की १६ फुट ऊंची मूर्ति तथा भूगर्भसे निकली हुई मूर्तियां हैं। क्षेत्रके मन्त्री कार्यालयका पता इस प्रकार है-मन्त्री, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सिहोनिया, द्वारा श्रमण वस्त्रालय, झण्डा चौक, मुरैना (म.प्र.) ग्वालियर मुरैनासे रेल-मार्ग द्वारा ग्वालियर ३९ कि. मी. है। यह शहर तीन भागोंमें विभाजित है। ग्वालियर, लश्कर और मुरार । लश्करमें ९ जैन धर्मशालाएँ हैं। ग्वालियरमें २ और मुरारमें १। इनमें नयी सडक ( लश्कर ) पर महावीर धर्मशाल नक है। ग्वालियर में। मन्दिर और ४ चैत्यालय हैं। लश्करमें २० मन्दिर और ३ चैत्यालय हैं तथा मुरारमें २ मन्दिर और २ चैत्यालय हैं । ग्वालियरके किलेमें पहाड़में उकेरी हुई मूर्तियां दर्शनीय हैं। मूर्तियोंकी संख्या अनुमानतः १५०० के लगभग है। ये मूर्तियां किलेमें ५ समूहोंमें हैं, उरवाही समूह, दक्षिण-पश्चिम समूह, दक्षिण-पूर्व समूह, उत्तर-पश्चिम समूह और उत्तर-पूर्व समूह । इनमें सबसे विशाल मूर्ति खड्गासनमें उरवाही द्वीप समूहमें भगवान् आदिनाथकी ५७ फुट और पद्मासनमें एक पत्थरकी बावड़ीमें सुपाश्वनाथको ३५ फुट ऊंची प्रतिमा हैं। ये मूर्तियाँ १५वीं शताब्दीमें तोमरवंशीय नरेश डूंगरसिंह, कीर्तिसिंह और मानसिंहके राज्यकालमें बनी थीं और बननेके ६० वर्ष बाद बाबरने इन्हें खण्डित किया। - इन मूर्तियोंके अतिरिक्त किले में दर्शनीय स्थान ये हैं-गूजरी महल जहाँ संग्रहालय है। सास-बहूके दो मन्दिर, तेलीका मन्दिर । वर्षमें ग्वालियरमें कई जन मेले होते हैं-२६ जनवरीको रथयात्रा, असोज कृष्णा २, ४ और अमावस्याको जलेव । सोनागिरि .. ग्वालियरसे ६१ कि. मी. दूर सोनागिरि रेलवे स्टेशन है। वहाँसे क्षेत्र ५ कि. मी. है । क्षेत्र तक पक्की सड़क है । स्टेशनपर तांगे मिलते हैं। ग्वालियरसे सोनागिरि तक सीधी पक्की सड़क है तथा सीधी बस-सेवा भी है। __यह सिद्धक्षेत्र है। यहाँसे नंगकुमार, अनंगकुमार आदि पांच करोड़ मुनि मुक्त हुए हैं। आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभका समवसरण भी यहाँपर आया था। इस पर्वतपर अ मुनियोंको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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