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________________ . मक्सी पाश्वनाथ मार्ग और अवस्थिति श्री अतिशय क्षेत्र मक्सी पार्श्वनाथ सेण्ट्रल रेलवेकी भोपाल-उज्जैन शाखापर मक्सी नामक स्टेशनसे लगभग तीन कि. मी. दूर है। स्टेशनसे लगभग एक फलांग दूर दिगम्बर जैन धर्मशाला भी है । क्षेत्रपर दो मन्दिर हैं। उज्जैनसे यह क्षेत्र ३८ कि. मी. है और इन्दौरसे ७२ कि. मी.। क्षेत्रके लिए उज्जैन, इन्दौर, शाजापुरसे बराबर बसें मिलती हैं। यहां पोस्ट आफिस है। इसका जिला शाजापुर है। गाँवका नाम, जहाँ यह क्षेत्र है, कल्याणपुर है। अतिशय यह क्षेत्र भगवान् पाश्वनाथकी प्रतिमाके अतिशयोंके कारण अतिशय क्षेत्र कहलाता है। इस मूतिके विविध चमत्कारोंकी कथाएँ जनश्रुतियोंके रूपमें प्रसिद्ध हैं। महमूद गजनवीने भारतके विभिन्न भागोंपर सन् १००० से १०२७ तक अनेक बार आक्रमण किये। आक्रमण करने में उसका मुख्य ध्येय इस्लामका प्रचार, भारतीयोंको इस्लामकी दीक्षा देना, भारतके मन्दिर और मूर्तियोंका विनाश करना, यहांसे धन लूटना और अपने साथ अधिकसे अधिक हाथी और गुलामोंको गजनी ले जाना था। वह जब देशको रौंदता हुआ और मन्दिरों, मूर्तियोंका भंजन करता हुआ मक्सी आया, उस समय रात्रि हो गयी थी। उसने सैनिकोंको विश्राम करनेकी आज्ञा दी। प्रातःकाल होनेपर पार्श्वनाथकी विख्यात मूर्ति और मन्दिरको तोड़नेकी उसकी योजना थी। किन्तु रातमें वह भयानक रूपसे बीमार पड़ गया। उसे अन्तः अनुभव होने लगा कि यह यहाँके पाश्वनाथका चमत्कार है। उसने फौजको आदेश दिया कि वे जैनियोंके इस मन्दिर और मूर्तिको कोई नुकसान न पहुंचावें। बल्कि उसने अपने कृत्यके प्रायश्चित्तस्वरूप मन्दिरके मुख्य द्वारपर ईरानी शैलीके पाँच कंगूरे बनवा दिये, जिससे इस घटनाकी स्मृति सुरक्षित रह सके तथा अन्य कोई मुस्लिम आक्रान्ता इसपर आक्रमण न करे। ये कंगूरे मन्दिरके द्वारपर अब तक बने हुए हैं। लगता है, कि उक्त घटना महमद गजनवीकी न होकर मालवाके किसी सुलतानकी है क्योंकि महमूद मालवामें तो आ ही नहीं पाया था। सुलतानका क्या नाम था, यह तो ज्ञात नहीं हो सका किन्तु उपर्युक्त घटनामें सत्य अवश्य मालूम पड़ता है। ____ एक और भी अनुश्रुति है। कुछ चोर ताला तोड़कर चोरी करनेके इरादेसे मन्दिरमें घुसे। वे माल-असबाबकी गठरी बांधकर चलने लगे लेकिन वे अन्धे हो गये। वे रात-भर परिक्रमामें घूमते रहे, किन्तु मार्ग नहीं मिला। सुबह होनेपर वे मय मालके पकड़े गये। . यह निश्चित है कि मक्सीके पार्श्वनाथ चमत्कारी हैं और यहां अनेक चमत्कारपूर्ण घटनाएँ घटित होती रहती हैं । इसलिए यहाँके सम्बन्ध में अनेक रहस्यपूर्ण किंवदन्तियां प्रचलित हो गयी हैं। आज भी अनेक जेनेतर लोग भी यहां मनौती मनाने आते हैं। ..
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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