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बिहार-बंगाल - उड़ीसा के दिगम्बर जैन तीर्थं
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आचार्य कुन्दकुन्द - विरचित प्राकृत निर्वाणकाण्डमें भी चम्पापुर से ही वासुपूज्य के मुक्त होनेका उल्लेख मिलता है-
अट्ठावयम्मि सहो • चंपाए वासुपूज्ज जिणणाहो ।
इसी प्रकार संस्कृत निर्वाणभक्ति में भी चम्पाको ही वासुपूज्यका निर्वाणक्षेत्र स्वीकार किया है
चम्पापुरे च वसुपूज्यसुतः सुधीमान् । सिद्धि परामुपगतो गतरागबन्धः ॥
सभी ग्रन्थोंमें चम्पापुरको ही वासुपूज्य भगवान्का निर्वाण-क्षेत्र बताया गया है । किन्तु आचार्य गुणभद्र-विरचित 'उत्तर-पुराण' में मन्दारगिरिको वासुपूज्य स्वामीकी निर्वाण -भूमि लिखा है । वह उल्लेख इस प्रकार है
'स्थित्वात्र निष्क्रियो मासं नद्या राजतमौलिका । संज्ञायाश्चित्तहारिण्याः पर्यन्तावलिवर्तिनि ॥ अग्रमन्दरशैलस्य सानुस्थानविभूषणे ।
व मनोहरोद्याने पल्यङ्कासनमाश्रितः ॥ मासे भाद्रपदे ज्योत्स्ने चतुर्दश्यापरा
।
विशाखायां ययो मुक्ति चतुर्नवतिसंयतः ॥ ' - पर्व ५८, श्लोक ५१-५३
अर्थात् भगवान् वासुपूज्य स्वामी एक मास तक योग निरोध करके राजतमौलि नदीके तटपर अवस्थित मन्दार पर्वतके मनोहर उद्यानमें पल्यंकासन से भाद्रपद शुक्ला १४ के अपराह्नमें ९४ मुनियोंके साथ मोक्ष पधारे ।
इस उद्धरणसे ज्ञात होता है कि मन्दारगिरिसे ९४ मुनियोंके साथ वासुपूज्य मुक्त हुए । किन्तु इससे कोई विरोध नहीं पड़ता । अंगदेशकी राजधानी चम्पा उस युगमें काफी विस्तृत थी । पुराणोंमें ऐसे उल्लेख मिलते हैं, जिनमें चम्पाका विस्तार ४८ कोस बताया गया है । मन्दारगिरि तत्कालीन चम्पाका बाह्य उद्यान था और वह चम्पामें ही सम्मिलित था ।
वर्तमान मान्यता और अनुश्रुति यह है कि चम्पानालेमें वासुपूज्य भगवान् के गर्भ और जन्म-कल्याणक मनाये गये । मन्दारगिरिमें दीक्षा और केवलज्ञान - कल्याणक हुए तथा चम्पापुर भगवान्का निर्वाण हुआ ।
प्राचीन सांस्कृतिक नगरी
चम्पा भारतकी प्राचीन सांस्कृतिक नगरियोंमें से है । भगवान् ऋषभदेवने जिन ५२ जनपदोंकी रचना की थी, उनमें अंग भी था जिसकी राजधानी चम्पा थी । भगवान् ने जिन देशों में विहार करके जन-जनको कल्याणका मार्ग बताया, उनमें भी अंग था । उत्तर भारतके जिन सोह
१. सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, उण्डू, अश्मक, रम्यक, कुरु, काशी, कलिंग, अंग, वंग, सुह्म, समुद्रक, काश्मीर, उशीनर, आर्त, वत्स, पंचाल, मालव, दशार्ण, कच्छ, मगध, विदर्भ, कुरुजांगल, करहाट, महाराष्ट्र, सुराष्ट्र, आभीर, कोंकण, वनवास, आन्ध्र, कर्णाट, कोशल, चोल, केरल, दारु, अभिसार, सौवीर, शूरसेन, अपरान्तक, विदेह, सिन्धु, गान्धार, यवन, चेदि, पल्लव, काम्बोज, आरट्ट, वाह्लीक, तुरुष्क, शक और केकय इन ५२ देशोंकी रचना भगवान् ऋषभदेवने की । — आदिपुराणपर्व १२ श्लोक ७६-७८ । २. काशीमवन्ति कुरु कोसल-सुह्म-पुण्ड्रान्, चेद्यङ्गवङ्ग-मगधान्ध्र- कलिङ्ग-मद्रान् । पाञ्चाल-मालव- दशार्ण- विदर्भदेशान् सन्मार्गदेशन परो विजहार धीरः ॥ - आदिपुराण २५।२८७ ।