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________________ बिहार-बंगाल-उड़ोसाके दिगम्बर जैन तीर्थ महाराज सिद्धार्थ और महावीर क्षत्रिय कुलमें उत्पन्न हुए थे। उनके वंशका नाम ज्ञातृवंश था और उनका गोत्र काश्यप था। महारानी त्रिशलाके पितृपक्षका गोत्र वाशिष्ठ था । ज्ञातृवंशके होनेके कारण महावीरको नातपुत्त ( ज्ञातृपुत्र ) भी कहा जाता था। बौद्ध साहित्यमें तो महावीरके लिए सर्वत्र 'निगंठ नातपुत्त' शब्द दिया गया है, जिसका अर्थ है निर्ग्रन्थ ज्ञातृपुत्र । श्वेताम्बर साहित्यमें महावीर और सिद्धार्थको सर्वत्र ज्ञातृवंशी और काश्यप गोत्रीय बताया है। यथा 'रयणि चणं भगवं महावीरे णायकुलंसि साहरिये सिद्धत्थराय भवणंसि।' -कल्पसूत्र ४।८९ 'खत्तिय कुंडगामे णयरे णायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासवगुत्तस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठगुत्ताए..., -कल्पसूत्र द्वितीय क्षण । २१,२६,२८,३०,३२ यही पाठ आचारांग २।२४ में है 'विणीए णाए णायपुत्ते णायकुलचन्दे "' -कल्पसूत्र ५।१११ 'समणे भगवं महावीरे णाये णायपुत्ते णायकुलचन्दे...' -आचारांग २।२४।२८ 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' में सिद्धार्थको 'ज्ञातवंश्यः' बताया है और इक्ष्वाकुकुलोत्पन्न लिखा है। 'भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया...' -उत्तराध्ययन 'लोगुत्तमे समये णायपुत्ते...' 'णिव्वाणवारीणिह णायपुत्ते....' –सूत्रकृतांग षष्ठ अध्ययन इस प्रकार श्वेताम्बर साहित्यमें सर्वत्र सिद्धार्थ महाराज और महावीरको ‘णाये, णायपुत्ते या णायकुलचन्दे' लिखा है और हेमचन्द्राचार्यने उन्हें 'ज्ञातवंश्यः' लिखा है। टीकाकारोंने भी ‘णाय' का अर्थ 'ज्ञात' ही किया है। किन्तु दिगम्बर साहित्यमें उन्हें 'नाथ वंश' का कहा गया है और प्राकृत ग्रन्थों में उन्हें 'णाह' कुलोत्पन्न बताया है, जिसका अर्थ 'नाथ' होता है। षट्खण्डागमके चतुर्थ वेदना खण्ड भाग ९ (४।१।४४) में निम्नलिखित उल्लेख मिलता है___ "कुंडपुर पुरवरिस्सर सिद्धत्थक्खत्तियस्स णाहकुले। वीए देवीसदसेवमाणाए॥" यही गाथा 'कसायपाहुड' की जयधवला टीकामें आचार्य वीरसेनने 'पेज्ज दोस विहत्ती'में उद्धृत की है, जिस प्रकार उन्होंने इसे षट्खण्डागममें उद्धृत किया है। इससे प्रतीत होता है कि यह गाथा वीरसेनाचार्यसे किसी प्राचीन ग्रन्थ की है। इसी प्रकार 'तिलोयपण्णत्ति' ग्रन्थमें उन्हें 'णाह' वंशमें ही उत्पन्न हुआ माना है । गाथा इस प्रकार है १. अंगुत्तर निकाय अट्ठकथा, अंगुत्तर निकायका सीहसुत्त, संयुत्त निकायका जटिलसुत्त, मज्झिम निकायका महासुकुलदायि सुत्त, चूलसारोपम सुत्त, चूलगोसिंगसुत्त, महासल्लक सुत्त, चूलसुकुलदायी सुत्त, अभय राजकुमार सुत्त, देवदहसुत्त, सामगाम सुत्त । दीघनिकायका संगीति परियाय सुत्त, सामञ्जफल सुत्त, महापरिनिव्वाण सुत्त, पासादिक सुत्त । २. कसायपाहुड, भाग १, पृ. ७८ ।
SR No.090097
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1975
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size18 MB
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