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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ नगरीके बाह्य वनमें जो आधुनिक कुलुहा पर्वत कहलाता है-दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक हुए। वासुपूज्य भगवान्के चारों कल्याणक चम्पा नगरी ( वर्तमान भागलपुर ) और इसके बाह्य उद्यान–जो आधुनिक मन्दारगिरि है—में हुए । भगवान् मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ और नमिनाथके चारों कल्याणक अपनी-अपनी जन्म-नगरियोंमें हुए। भगवान् महावीरके गर्भ, जन्म और तप कल्याणक कुण्डग्राम तथा उसके बाह्य उद्यानमें हए तथा केवलज्ञान कल्याणक जृम्भक ग्राममें।
जहाँ तक तीर्थंकरोंके निर्वाण कल्याणकका सम्बन्ध है, भगवान ऋषभदेव और नेमिनाथको छोड़कर शेष बाईस तीर्थंकरोंके निर्वाण कल्याणक मनानेका सौभाग्य बिहार प्रदेशको प्राप्त हुआ। इन बाईस तीर्थंकरोंमें भी वासुपूज्य और महावीरको छोड़कर शेष बीस तीर्थंकरोंका निर्वाण सम्मेद शिखरसे हुआ। वासुपूज्य चम्पानगरीसे मुक्त हुए और महावीरका निर्वाण पावासे हुआ।
इस प्रकार बिहार प्रदेशमें तीर्थंकरोंके कुल छियालीस कल्याणक मनाये गये। इन कल्याणकोंसे सम्बन्धित १० तीर्थक्षेत्र हैं-भद्रिकापुरी, कुलुहा, मिथिलापुरी, चम्पापुरी ( भागलपुर ), मन्दारगिरि, राजगृही, वैशाली-कुण्डग्राम, जृम्भकग्राम, पावापुरी, सम्मेदशिखर । बंगाल
प्राचीन कालमें 'वंगदेश ( वर्तमान बँगलादेश ) व्यापारिक दृष्टिसे अत्यन्त समृद्ध था। राजनैतिक दृष्टिसे, लगता है, प्राचीन वंग अग्रपंक्तिमें कभी अपना स्थान नहीं बना पाया। वहाँ ऐसा कोई प्रतापी व्यक्तित्व नहीं उभरा, जिसने दिग्विजय द्वारा चक्रवर्तीका विरुद धारण किया हो। छठी शताब्दीके अन्तमें वंगके राजनैतिक क्षितिजपर शशांक नरेशका उदय हआ। उसने समूचे वंग, कलिंग, आन्ध्र, कोंगद और कन्नौजको जीत लिया। किन्तु चक्रवर्ती बननेके लिए सम्पर्ण भरतखण्डकी भमिको जोतना आवश्यक था। यह शौर्य वह नहीं दिखा सका। बल्कि उसने जैनों और बौद्धोंके मन्दिरों, मतियों और स्तुपोंका निर्मम विध्वंस करके औरंगजेब-जैसे धर्मान्ध व्यक्तियोंकी काली सूचीमें अपना नाम अंकित करा लिया। शशांकके अत्याचारोंका बदला पालनरेशोंने कसकर लिया, किन्तु वे भी ऐसे नरेश नहीं बन सके, जिनको सम्राट् कहा जा सकता।
___वंगप्रदेशमें जैनधर्म प्रचारके कुछ ऐसे उल्लेख उपलब्ध होते हैं, जिनके अनुसार ऋषभदेव, पार्श्वनाथ और महावीरने वंगमें विहार और धर्मोपदेश किया था। कहा जाता है, पार्श्वनाथके धर्म-प्रवचनोंने वंगदेशके सहस्रों व्यक्तियोंके हृदयोंमें जैनधर्मकी अमिट छाप अंकित कर दी थी। पार्श्वनाथके विहार-प्रसंगमें ताम्रलिप्ति और कोपकटक स्थानोंका भी उल्लेख आता है। इन स्थानोंपर वे गये थे। पार्श्वनाथके पश्चात् महावीरने अंग, मगध और कलिंगके समान वंगदेशमें भी विहार करके जन-मानसको जैनधर्मकी शिक्षाओंसे प्रभावित किया था। महावीर तीर्थंकरके व्यक्तित्व और उपदेशोंका प्रभाव जनतापर अत्यधिक पड़ा। मानभूम, वर्दवान आदि नगरोंके नाम महावीरके नामोंपर ही रखे गये, ऐसा कहा जाता है। बंगालके इन स्थानों और इनके निकटवर्ती जिलोंमें अनेक प्राचीन जैनमन्दिरोंके भग्नावशेष बिखरे हुए पड़े हैं। इन जिलोंमें अनेक जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हई हैं। बंगालके विभिन्न भागोंमें फैले हुए सराक बन्धु पार्श्वनाथ और महावीरका धर्मपरम्पराके जीवित अवशेष हैं।
इतिहास ग्रन्थोंसे ज्ञात होता है कि आचार्य अर्हबली पुण्ड्रवर्धनमें उत्पन्न हुए थे। अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु ताम्रलिप्तिके निवासी थे। ई. सन् ४७८ ( गुप्त सं. १५९ ) के एक ताम्रपत्रसे