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प्रस्तुति
'भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ग्रन्थमाला' का यह पहला पुष्प पहले भागके रूपमें भगवान् महावीरके निर्वाण महोत्सवको स्मृतिमें समर्पित है। यह समर्पण हमारे जीवनका सौभाग्य है ।
इस खण्ड में उत्तरप्रदेशके तीर्थोका वर्णन प्राचीन क्षेत्रीय भू-भागोंके नामोंके आधारपर किया गया है। अर्थात् (१) कुरुजांगल और शूरसेन, (२) उत्तराखण्ड, (३) पंचाल, (४) काशी और वत्स, (५) कोशल और, (६) चेदि । इस पद्धति प्राचीन इतिहास, पुराण कथा और परम्पराके साथ सन्दर्भों का मेल बैठानेमें सरलता होगी। दिल्ली राज्य और आज जो प्राचीन भू-भाग पाकिस्तानको सीमामें आ गया है, उस पोदनपुरतक्षशिलाका भी परिचय इस खण्डके परिशिष्ट में दिया गया है ।
तीर्थक्षेत्र कमेटीकी ओरसे पण्डित बलभद्रजी गत चार वर्षोंते कमेटी द्वारा पूर्व संकलित सामग्रीके आधार पर कार्य कर रहे हैं । उन्होंने तात्कालिक यात्राओं द्वारा संकलनमें नयी सामग्री जोड़कर लेखनसम्पादनको अद्यतन बनाने का प्रयत्न किया है । कमेटी द्वारा ग्रन्थमालाकी योजना किस प्रकार निर्धारित और स्वीकृत है इसका उल्लेख पण्डित बलभद्रजी अपनी भूमिकामें कर रहे हैं। योजना के अनुसार उक्त पहले भागके प्रकाशनके उपरान्त अगले चार भाग इस प्रकार नियोजित हैं :
दूसरा भाग
तीसरा भाग
चोया भाग
पांचवां भाग
— बंगाल, बिहार, उड़ीसा के तीर्थ
- मध्यप्रदेश के तीर्थ
- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्रके तीर्थ - दक्षिण भारतके तीर्थ
इनमें से दूसरे और तीसरे खण्डोंकी संकलित सामग्रीका निरीक्षण संशोधन प्रस्तावित यात्राओंसे प्राप्त सभी जानकारीके आधारपर चल रहा है। दक्षिण भारतकी यात्राओं और सामग्री संकलनका प्रबन्ध अलगसे किया गया है ताकि इस ग्रन्थमालाके सभी खण्ड जल्दी प्रकाशित किये जा सकें ।
जैसा कि इस प्रथम भागते स्पष्ट होगा, तोयोंके वर्णनमें पौराणिक, कलापरक सामग्रीका संयोजन बड़े परिश्रम और सूझ-बूझसे किया गया है । व्यापक अनुभव है। सामग्रीको सर्वांगीण बनाने की दिशामें जो भी सम्भव था, का निर्देशन और श्री साहू शान्तिप्रसादजीका मार्गदर्शन एवं प्रेरणा पण्डितजीको उपलब्ध रही है ।
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ऐतिहासिक और स्थापत्य तथा पण्डित बलभद्रजीका इस कार्य में कमेटीके साधन और ज्ञानपीठ
पुस्तकमें जितने मानचित्र और जितनी अधिक संख्यामें फोटो हैं, उनका संग्रह, ब्लाक आदिकी तैयारी और प्रकाशन आदि आज कितने व्यय-साध्य हैं, यह सर्वविदित है । काग़ज़, छपाई, जिल्दबन्दी आदिकी दरें उत्तरोत्तर बढ़ती गयी हैं । फिर भी तीर्थक्षेत्र कमेटीने इस ग्रन्थमालाको सर्व-सुलभ बनानेकी दृष्टिसे केवल लागत मूल्यके आधार पर दाम रखनेका निर्णय किया है। भारतीय ज्ञानपीठका व्यवस्था सम्बन्धी जो व्यय हुआ है, और जो साधन सुविधाएँ इस कार्यके लिए उपलब्ध की गयी हैं, उनका समावेश व्यय राशिमें नहीं किया गया है । इस पहले भाग के ६ अध्यायों (जनपदों) की कुछ प्रतियाँ अलग-अलग छपाई गयी हैं ताकि सम्बन्धित तीर्थक्षेत्र उतने ही अंशकी प्रतियां प्राप्त कर सकें।