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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
असहनीय उत्पन्न हुप्रा हो, विकट जलोदर पीड़ा भार । जीने की प्राशा छोड़ी हो, देख दशा दयनीय अपार ॥ ऐसे व्याकुल मानव पाकर, तेरी पद - रज संजीवन । स्वास्थ्य-लाभकर बनता उसका, कामदेव सा सुन्दर तन ।।४५।।
(ऋद्धि) * मह णमो अक्खीणमहारगसाणं ।
मंत्र । ॐ नमो भगानी क्षुद्रोपद्रवशान्तिकारिणी रांग ज्वरोपशम । शान्ति ! कुरु कुरु स्वाहा :
(विधि) श्रदासहित ऋद्धि-मंत्र को माराधना से समस्त रोग भाट हो जाते हैं तथा उपसर्ग प्रादि का भय नहीं रहता ।।४।।
प्रयं-हे पूज्यपाद ! जैसे अमृत के लेप से मनुष्य निरोग और मुन्धर हो जाता है, उसी प्रकार प्रापके चरणकमल के रजरूपी अमृत के लेप से (चरणों को सेवा) से भीषरण जलोदर प्रावि रोगों से पीड़ित मनुष्य भी कामदेव के समान सुन्दर हो जाते हैं ॥४५।। ॐ ह्री दाहतापजलोदराष्टदशकुष्ट सन्निपातादिरानहाय क्लीं
महावीजाक्षरसहिताय श्रीवृषभजिनेन्द्राय अयम् ॥४५॥
Even those, who are drooping with the weight of 1errible dropsy and have given up the hope of life and have reached a deplorable conditon, become as beautiful as Cupid hy besincuring their bodies with the nectarlike pollen dust of Thy lotus-fcet. 45.
रन्धन विमोक्षक प्रापादकण्ठ – मुरुश्रङ्खलवेष्टितानाः,
गाढं बह निगडकोटिनिवृष्टजङघाः । त्वन्नाममन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः,
सद्यः स्वयं विगतबन्धभया भवन्ति ।।४६॥